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भारतीय राष्ट्रिकों द्वारा चीन का निर्माण / 377 व्यक्तिगत जीवन का अनुकरण नही करेंगें और जहाँ तक मेरी जीवन यात्रा है तो मैं इतना ही कहूँगा कि कमल कीचड़ में खिलता है।
वैचारिक के धरातल पर भी भारतीयों ने चीन का निर्माण किया। जैसा कि हम जानते हैं महायानशाखा हिन्दुत्व के काफी करीब थी, अतः वैष्णव धर्म के अवतारवाद, मूर्तिपूजा, जीवन के बाद का जीवन और कर्म के सिद्धांत ने चीन की संस्कृति को समृद्ध किया। तांगकाल के समय से भारतीय आवागमन का सिद्धात, स्वर्ग-नरक, ब्रहमांड और शून्यवाद के सिद्धांत चीनी जनमानस को स्वीकार होने लगे। चीन का तियांगतांग शब्द संस्कृत के देवपुत्र का सीधा अनुवाद है जिस
चीन में बौद्ध संस्कृति का प्रचार :
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बोधिधर्म :- ये 526 ई. में भारत से चीन के लिए रवाना हुए थे और अगले साल चीन पहुँचे थे। धर्म के प्रचार में इन्होंने ध्यान और चिंतन को महत्ता प्रदान की थी दक्षिणी चीन के राजा लियांग वुटी ने इन्हें नानकिंग बुलाया था ये नागार्जुन के शून्यवाद के चीन में प्रचारक थे। इन्होंने बौद्ध आध्यात्मिक मूल्यों को चीन में लोकप्रिय बनाया और सत्यता, प्रमाण और अनुमान से परे परम सत्ता का ध्यान करने को कहा। ऐसा माना जाता है कि जापान का जेन (ध्यान दर्शन) इन्ही के सिद्धांतो से उत्पन्न हुआ था। इन्होनें महापरिनिर्वाणशास्त्र का चीनी भाषा में अनुवाद किया
बोधिरुचि या धर्मरुचि : आपके नाम का शाब्दिक अर्थ है, बुद्धि से प्रेम करने वाला प्रारम्भ में आपका नाम धर्मरूचि अर्थात नियम या सिद्धांत प्रिय था। पर बाद में महारानी वु सो थियेन (684705 ई.) ने आपका नाम बुद्धिरुचि कर दिया था आपने भारतीय खगोल, चिकित्सा, भूगोल, एवं आध्यात्म की पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया जिससे चीन को काफी लाभ हुआ आप त्रिपिटक के महान ज्ञाता थे और आपने रत्नमेघ सूत्र का 693 ई. में चीनी भाषा में अनुवाद किया। आप इवेनसांग के समकालीन थे और दोनो ने मिलकर 53 भारतीय पुस्तकों का अनुवाद किया था। 727 ई. में आपकी मृत्यु हुई, उस समय आपकी उम्र 156 वर्ष थी। आपने दसभूमक स्कूल की स्थापना की थी। आपके द्वारा अनुवादित पुस्तकों में प्रज्ञापारमिताअर्धशतक, महारत्नकूटसूत्र, अमितायुषव्यूह, नियमविनिश्चिय, उपालिपरिपृच्छा, मैत्रेयीपरिपृच्छा, महायानसूत्र एवं मंजुश्रीरत्न गर्भाधरणीसूत्र प्रमुख है।
उपरोक्त वर्णित विद्वानों के अलावा सैकडों ऐसे भारतीय हैं जिनके जीवन चरित्र के बारे में जानकारी हमें प्राप्त नहीं है पर हानवंश, तांगवंश, सुंगवंश, सुईवंश एवं चिनवंश के डायनेस्टिक एनल्स में इनकी एवं इनके कार्यों की चर्चा की गई है। तान-युन शान, लियांग - चि-चाओ, जि-शियालिन, चिन केहमू एवं तान चुंग जैसे भारत विद् चीनी विद्वानों ने अपने अध्ययन में यह सिद्ध किया है कि चीन जैसी विशाल सभ्यता एवं संस्कृति को आध्यात्मिक एवं वैचारिक रूप से भारतीयों ने उन्नत एवं समृद्ध किया है। अब सभ्यताओं में संघर्ष की जगह संवाद का समय है, और भारत-चीन को करीब आकर दुनिया का पथ-प्रदर्शन करना है। यह शोध पत्र उसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है।
संदर्भ टिप्पणी:
1. पी.वी. बापट 2500 इयर्स आफ बुद्धिज्म, नई दिल्ली, 1997 पृ. 58-59; पी.सी. बागची इण्डिया एण्ड चायना, बम्बई, 1948 मे उल्लेखित है ।
2. तानचुंग, ट्रिटन एण्ड ड्रेगन, नई दिल्ली, 1979, पृ. 108
3.
वही पृ 14
4
तानचुग, इण्डिया एण्ड चायना, नई दिल्ली. पृ.सं. 13-14
5. तानचुंग ट्रिटन एण्ड ड्रेगन, नई दिल्ली. 1979, पृ. 14