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374 / Jijnasa
हैं। चीनी विद्वान ने कई भारतीय वंशधरों का नाम लिया जिन्होंने चीन की भाषा, साहित्य, धर्म और विज्ञान को नया रूप दिया था और उन्होंने अपने चीनी वंशधरों को भारत का ऋणी होने को कहा था।
इत्सिंग लिखता है कि ईसा की प्रथम शताब्दी (67 ई.) के आस पास पूर्वी हान वंश के राजा मिंग टी ने सपने में देखा कि एक सफेद हाथी उसके दक्षिण-पश्चिम सीमांत पर खडा है। राजा की नींद टूट गई और शगुन विचार ने वाले ज्योतिषियों को बुलवाकर पूछा कि सपने का निहितार्थ बताओ। ज्योतिषियों ने कहा कि तथागत बुद्ध की पवित्र देशना चीन में प्रवेश करना चाहती है। दूत मध्य एशिया के बौद्ध केन्द्रों की ओर दौड़ाये गए और इसी कम में काश्यप मतंग और धर्मरक्षित नामक दो विद्वान सफेद घोड़े पर बैठकर हान राजधानी में आये और राजा को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। कारसुन चांग नामक विद्वान ने लिखा है कि तुनहुआंग के पास चीनी राजाओं ने व्हाइट हॉर्स मोनेस्ट्री का निर्माण किया और इन दोनों श्रीमन्तों की मूर्ति वहाँ पर स्थापित है।
यह शोध पत्र चीन में गए भारतीयों के कार्यों का वर्णन एवं नमन स्वरूप है। इन भारतीय विद्वानों में कुमारजीव और परमार्थ हैं। पर इनके ही जैसे 169 भारतीय विद्वान चीन में कार्यरत थे, जिनमें से अधिकांश की जीवनी अज्ञात एवं अप्राप्त है। भारत वर्ष का चीन में नाम ब्रह्मदेश था। ज्योतिषशास्त्र को ब्राह्मण ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र माना जाता था। धर्मरुचि नामक भारतीय ने 566-571 तक 20 ब्राहमण खगोलशास्त्र की पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया था। गुप्तों के समकालीन तांग काल में चीन में तीन भारतीय कैलेण्डर स्कूल कार्यरत थे। ये स्कूल थे काश्यपपीठ, कुमारपीठ, और गौतमपीठ। खगोलीय एवं ज्योतिषीय कालगणना के लिए तांग राजवंश ने एक विभाग खोला था, जिसमें हजारों भारतीय विद्वान काम करते थे (7वी-8वीं शताब्दी)। नवग्रह पर आधारित कैलेण्डर चीन में चलता था, जिसमें शुक्ल और कृष्ण पक्ष होते थे। चीनी कालगणना में अनूदित मतंगीसूत्र, महासनिपातसूत्र, महाप्रज्ञापारमितासूत्र एवं लोकस्थिति-अभिधर्मशास्त्र पढ़ाए जाते थे। भारतीय गणित को राशि सूत्र के रूप में चीनी भाषा में अनूदित किया गया। नौ अरबी अंक और शून्य शुद्ध भारतीय आविष्कार थे। इनके परिचय से चीनी गणित शास्त्र समृद्ध हुआ।" ___ भारतीय गणित शास्त्री हजार, लाख और दस लाख के लिए भिन्न-भिन्न स्केल प्रयोग में लेते थे जिसे चीनी लोगों ने प्रयुक्त किया। त्रिकोणमिति का साइन टेबल चीन में लोकप्रिय हुआ। भारतीय विद्वानों को प्राचीन काल में पंच विद्या में पारंगत माना जाता था। ये विद्यायें थीं, उच्चारणशास्त्र एवं व्याकरणशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, दर्शनशास्त्र एवं तर्कशास्त्र। ये सभी भारतीय विद्यायें तीसरी शताब्दी ई.पू. में चीन में लोकप्रिय थीं। इस शताब्दी में 100 चिकित्साशास्त्र की पुस्तकें चीनी भाषा में अनूदित की गयीं । इन पुस्तकों में नागार्जुन, जीवक और ब्रह्मा की पुस्तके प्रमुख थी। जो अब भारत में अप्राप्य है। 2 महारत्नाकर सूत्रजीवनशास्त्र का ग्रंथ है। भारतीय चिकित्सा सूत्रों में काश्यप का स्त्री रोग पर एवं रावण का शिशुरोग पर ग्रंथ चीन में काफी लोकप्रिय हुए। कुछ भारतीय चिकित्सक चीन में प्रैक्टिस करते थे। हान काल में सम्राट ताईसुंग केवल भारतीय औषधि लेता था। चीन की शाही औषधियों में भारतीय आयुर्वेद सर्वोपरि था। सम्राट ताईसुंग ने भारत में चीनी लोगों को भेजा था कि वे चीनी बनाने की विधि सीख कर आये। संस्कृत भाषा ने चीनी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया। चिन के मू नामक चीनी विद्वान की मान्यता है कि पाणिनीय व्याकरण ने चीनी साहित्य का स्वरूप ही बदल दिया। पाणिनीय व्याकरण ने चीन के भाषा विज्ञान को उन्नत किया एवं तिब्बत में नवीन लेखन को जन्म दिया। पाणिनीय व्याकरण ने चीन में ध्वनिशास्त्र का सूत्रपात किया एवं नवीन शब्दकोष की रचना का मार्ग प्रशस्त किया। चीनी विद्वान शाउ वेन ने संस्कृत के आधार पर सभी चीनी व्यंजनों को सूचीबद्ध किया एवं उन्हें 36 की संख्या तक संगठित किया, इससे चीनी उच्चारण शास्त्र समृद्ध हुआ। सुंगवंश में संस्कृत-चीनी शब्दकोष का निर्माण हुआ 14