________________
366
/
Jijnäsa
यही नहीं ऋग्वैदिक काल में कन्याओं को समान रूप से विद्याध्ययन के अवसर प्राप्त थे। बौद्धिक दृष्टि से उन्नत जनपारिवारिक स्थिरीकरण की अवस्था में सैन्य-अभियानों में व्यस्त, कृषक आर्यों ने स्त्रियों को स्वभावत: सामाजिक, शारीरिक एवं शेक्षिक दृष्टि से उन्नत एवं सम्मानपूर्ण स्थान दिया था। कन्याओं को सुयोग्य बनाने के लिए उदार शिक्षण-प्रबन्ध था । संहिताओं में बालिकाओं के लिए विद्या से सम्बन्धित उपनयन संस्कार का उल्लेख है। अल्तेकर महोदय का मत है कि उस समय नारी समाज भी वेदाध्ययन हेतु ब्रह्मचर्य के प्रतीक मौञ्जी को धारण करती थीं। इस मेखला का महत्त्व उपनयन संस्कार में विशेषतः परिलक्षित है। अथर्ववेद में मेखला का उद्देश्य है, कि वह ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी के व्रत की रक्षा तथा दुष्प्रवृत्तियों से उसके त्राण में सक्षम है। यज्ञोपवीता नारी का वर्णन ऋग्वेद में भी है। ऋग्वेद के बध्रिमती आख्यान की व्याख्या में सायण ने उसे राजर्षि की ब्रह्मवादिनी पुत्री माना है। स्त्री शिक्षिकाओं का उल्लेख है जिन्हें आचार्या और उपाध्याया कहा गया है। इसीलिए ब्रह्मवादिनी ऋषिकाओं के दर्शन हमें ऋग्वेद में होते हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान एवं वेद-रहस्यों की ज्ञात्री थीं। ये मन्त्रदृष्टा स्त्रियाँ ऋषिपद को प्राप्त करती थीं।
ये महिलाएँ न केवल शिक्षित व सम्मानपूर्ण सामाजिक स्थिति में थीं वरन् राजनीति के क्षेत्र में भी जागरूक थीं। गोपायनों की माता अगस्त्य-स्वसा मन्त्र द्रष्टी भजेरथ नरेश के वंशज असमति' नरेश की प्रशंसा करती है। साथ ही पंचजनों (जनपद) का भी संकेत है। ऋक संहिता की सर्वाधिक चर्चित अदिति ने वृत्रासुर नामक दैत्य की जनविरोधी प्रवृत्ति का विवरण दिया है और इन्द्र को अपनी सामर्थ्य से आकाश व पृथिवी को व्याप्त करने को कहती है। देवासुर संग्राम की सूत्रधायी अदिति ही है। गोधा ऋषिका इन्द्र के शक्ति नामक आयुध की प्रशंसा करती है, जो शत्रु को धाराशायी कर देता है।07 ये शस्त्र राष्ट्र रक्षा हेतु आवश्यक थे। यही नहीं उस समय भी युद्ध में प्राण देने वाले व्यक्ति श्रद्धा और सम्मान के पात्र थे।68 देश और धर्म के लिए प्राणोत्सर्ग करना उस काल में वंदनीय था। दशम मण्डल की मन्त्रद्रष्टा सरमा इन्द्र की दूती बनकर पणियों के पास गोधन को छुड़ाने के लिए जाती है और उन्हें इन्द्र के आक्रमण की भयंकरता के बारे में बताती है। सरमा का यह दौत्य कार्य नारी के बुद्धि चातुर्य को दर्शाता है। नारियाँ गुप्तचर कार्य करने में सक्षम थीं। इसी सूक्त की अन्य ऋचाओं से स्पष्ट है कि उस समय ऋषि महर्षि भी राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेते थे। सर्वोत्तम निधि गोधन की रक्षा का भार सम्पूर्ण समाज पर था।
इस युग में नारी को अजेय और शत्रु विजयी बताया गया है। उसे सहस्रवीर्या अर्थात् सहस्रो प्रकार की सामर्थ्यवाली कहा है। आवश्यकता पड़ने पर पतियों के साथ युद्ध में भी जाती थीं। खेल नृप की रानी विश्पला का पैर युद्ध में कट गया था। अश्विनी कुमार की कृपा से उसे लौहे का पैर लगा। मुद्गल की पत्नी मुद्गलानी ने डाकुओं का पीछा करने में पति की सहायता की थी। अपने पति के धनुष-बाण से डाकुओं को हराकर अपनी गायों को छुड़ाकर वीरता का परिचय दिया।। स्त्रियाँ सेना में भी भर्ती होती थी क्योंकि ऋग्वेद में महिला योद्धाओं का उल्लेख आता है। प्रधन, रण, समद, समन युद्धों के नाम थे। स्पष्टत: ऋग्वैदिक युग में महिलाओं को भी पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे। शारीरिक, बौद्धिक एवं आत्मविकास में पुरुषों के समकक्ष थी। ऋषिका वागाम्भृणी के अनुसार वाणी या वाक् राष्ट्र की शक्ति मानी जाती थी।74 घोषा राजदुहिता थी। वीघ्रमती भी राजपुत्री थी। बृहस्पति पुत्री ब्रह्मवादिनी रोमशा का विवाह सिन्धु तट पर स्थित राज्य के स्वामी स्वनय भावयव्य से हुआ था। ऋषिका दक्षिणा उसी को नृपति मानती है जो भरपूर दक्षिणा प्रदान करता है।7 जुहू द्वारा रचित मन्त्र में निर्णायक मण्डल अर्थात् पंच का उल्लेख है, जहाँ नारी अपने साथ हुए अन्याय के प्रतिकार हेतु प्रस्तुत होती थी। इस निर्णायक मंडल की निष्पक्षता विश्वसनीय थी। इस युग में नारी राजनीति में पुरुष के समकक्ष थी। इन मन्त्र दृष्टियों ने अपने मन्त्रों ने अपने मन्त्रों में राजा, जन, नदी, पर्वत, शस्त्रास्त्र, दौत्यकर्म, पंच-निर्णय, जन-सहयोग आदि का यत्र-तत्र वर्णन किया है। जिससे स्त्री समाज की अपने राष्ट्र के प्रति जागरूकता, सम्मान का भास होता है। ___ऋग्वेद का काल मुख्यतः धर्म, दर्शन और अध्यात्म प्रधान था। प्राचीन भारतीय विदुषियों ने भी ऋग्वैदिक धर्म के मूल तत्त्व प्राकृतिक शक्तियों को देवता माना और यज्ञ को जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। वेदों में प्रतिपादित धर्म का उद्देश्य