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व्यापक वैदुष्य के प्रतिमान: गोविन्द चन्द्र पाण्डेय / 31
5. व्यापक वैदुष्य के प्रतिमान गोविन्द चन्द्र पाण्डेय
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देवर्षि कलानाथ शास्त्री
भारतव्यापी ही नहीं, विश्वव्यापक ख्याति के घनी, राजस्थान से हर तरह से जुड़े रहे तथा वैदुष्य के कितने आयाम हो सकते हैं। इसके जीवन्त प्रमाण, भारत के शिखर मनीषी, बहुभाषापिद् पद्मश्री डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डे का महाप्रयाण जो रिक्ति छोड़ गया है. उसके भी अनेक आयाम हैं। पांडेयजी वर्षो तक इलाहावाद और राजस्थान विश्वविद्यालय आदि के कुलपति रहे थे, शिमला स्थित उच्च अध्ययन संस्थान और प्रयाग स्थित इलाहाबाद म्यूजियम के अध्यक्ष रहे थे। इतिहास, दर्शन प्राच्यविद्याओं और प्राच्यभाषाओं के प्रौढ़ विद्वान होने के साथ हिन्दी और संस्कृत में सर्जनात्मक लेखन करके उन्होंने जो कीर्तिमान बनाऐ ये और भी आश्चर्यजनक है। संस्कृत में उनके मुक्तक संकलन 'भागीरथी' को भारत की समस्त भाषाओं के साहित्य से छाँटकर दिया जाने वाला बिड़ला ट्रस्ट का सरस्वती पुरस्कार 2004 में मिला था जो संस्कृत के झंडाबरदार कवियों में से किसी को अबतक नहीं मिला था। तभी तो हाल ही में उन्हें मिला पद्ममश्री अलंकरण उनके कद से छोटा लगा था अनेक प्रेक्षकों को।
मार्च 2003 में दार्शनिक अनुसंधान परिषद ने उनके 80 वर्ष पूरे करने पर जो विशाल विद्वत् संगोष्ठी रखी थी। उसमें विश्वभर के दार्शनिक, इतिहासविद्, संस्कृत मनीषी, लेखक, कवि आदि उपस्थित थे। उनके सर्जनात्मक और विमर्शात्मक वैदुष्य के आयामों पर चर्चा तीन दिन तक हुई थी। उसमें पढ़े शोधलेख ग्रन्थाकार में भी निकले। हिन्दी में एक ग्रन्थ उसके निष्कर्षो को शामिल कर निकाला गया। जिसका शीर्षक था “ अव्यय" किन्तु उसमें भी उनके कृतित्व का पूरा चित्र नहीं था क्योंकि उसका फलक बहुत व्यापक है। उन्होंने प्राचीन इतिहास, बौद्ध संस्कृति, वेदिक वाड़मय, मूल्यमीमांसा, इतिहास दर्शन, भारतीय दर्शन, शंकराचार्य, तुलनात्मक धर्म, तुलनात्मक सौन्दर्यशास्त्र आदि दस पन्द्रह विषयों पर पचास से अधिक जो पुस्तकें लिखी थी वे अंग्रेजी, हिन्दी और संस्कृत, तीनों में थी अनुवाद अलग थे प्रसिद्ध अंग्रेजी कवियों की कविताओं का संस्कृत में अनुवाद, "अस्ताचलियम" और प्राकृत गाथासप्तशति का हिन्दी के दोहो में अनुवाद “महिलाएँ" शीर्षक से उन्होंने निकाला। ये अनुवाद और ये नाम अपने आप में क्या अजुबे नहीं लगते ?
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राजस्थान से पांडे जी का लगाव जन्म से पहले का था। उनकी दादी अलवर की थी. पिताजी अवश्य उत्तरप्रदेश में रहे थे। भारत सरकार की लेखा सेवा के उच्चअधिकारी थे। 30 जुलाई 1923 को इलाहाबाद में जन्में गोविन्दचन्द्रजी ने भाषाओं, इतिहास, दर्शन शास्त्र का अध्ययन क्षेत्रशचन्द्र चट्टोपाध्याय जैसे दिग्गजों से किया प्रारंभ से लेकर एम. ए. तक सभी परीक्षाओं में ये प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम रहे। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही ये प्राध्यापक हो गए फिर छोटी उम्र में ही कुलपति भी । 1962 से 1978 तक ये राजस्थान विश्वविद्यालय में रहे। पहले प्रोफेसर, फिर 1974 से 77 तक कुलपति। बाद में इलाहाबाद चले गए जहाँ प्रोफेसर भी रहे. कुलपति भी ।