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4. भारतीय संस्कृति के पुरोधा मनीषी प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे
कृष्णगोपाल शर्मा
प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे के अवसान से ऐसा लगा कि भारतीय संस्कृति का तत्त्वदर्शी, पुरोधा मनीषी, उसका निष्णात वाचक, व्याख्याकार और रहस्यद्रष्टा ब्रह्मर्षि उस विराट में लीन हो गया जिस विराट की इतिहास में क्रिया, प्रक्रिया और लीला को पहचानने की साधना उसके जीवन का अभिप्रेत था।
प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म 30 जुलाई 1923 को इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही आपने शिक्षा प्राप्त की और 1947 में आपने इसी विश्वविद्यालय से इतिहास के अध्यापक के रूप में अध्यापन यात्रा आरंभ की। 1957 में, 34 वर्ष की युवावस्था में, आप गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। उसके बाद 1962 में राजस्थान विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर आपने यहाँ के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग में टैगोर प्रोफेसर का पदभार ग्रहण किया और 1978 तक यहाँ कार्यरत रहे। इस दौरान 1974-77 के मध्य आप राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। 1978 में आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में आचार्य पद का दायित्व स्वीकार किया एवं 1983 में वहाँ के कुलपति के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद आप भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के नेशनल फैलो भी रहे. प्रयाग संग्रहालय के अध्यक्ष भी, इंडियन इंस्टीट्स्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, शिमला के निदेशक भी। आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे विजिटिंग गायकवाड़ प्रोफेसर भी रहे। शंकर पुरस्कार, सरस्वती पुरस्कार आदि अनेक सम्मानों से आपको अलंकृत किया गया। 21 मई 2011 को दिल्ली में अपनी पुत्री के निवास पर हृदयाघात से आपका निधन हो गया।
बौद्ध धर्म, भारतीय संस्कृति, इतिहास-दर्शन और मूल्य-दर्शन पर प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे की 18 पुस्तकें अंग्रेजी, हिन्दी और संस्कृत में प्रकाशित हैं- स्टडीज इन द ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, दि मीनिंग एण्ड प्रोसेस ऑफ कल्चर, भारतीय परम्परा के मूल स्वर, फाउन्डेशन ऑफ इंडियन कल्चर (दो खण्ड), मूल्यमीमांसा, भारतीय समाज - तात्विक और ऐतिहासिक विवेचन, शंकराचार्य - विचार और सन्दर्भ, श्रमणिज्म एंड इट्स कन्ट्रीब्यूशन टू इंडियन कल्चर एण्ड सिविलाइजेशन, सौन्दर्य दर्शन विमर्श, वैदिक संस्कृति, अपोहसिद्धि आदि। पाण्डे जी के चार काव्य संकलन भी प्रकाशित है- अग्निबीज, क्षण और लक्षण, अस्ताचलीयम. हंसिका। ___ ज्ञान और वैदुष्य की अद्भुत कांति के साथ पांडेजी के व्यक्तित्व में सरलता, सादगी एवं स्नेह की सेरलता भी थी। उनके पास बैठकर, उनसे बातचीत करते हुए लोगों को वैसी ही विशिष्ट सकारात्मक अनुभूति होती थी जैसा कि महात्मा गांधी से मिलने वाले लोग महसूस करते थे। एक प्रशासक के रूप में भी पांडेजी की दृष्टि सृजनधर्मी थी, प्रतिभाओं के घे धारखीचे और गुशी व्यक्तियों को स्वयं जानित कर उन्हें यथायोग्य पद एवं सम्मान प्रदान करने का प्रयास करते थे) एक समृद्ध शिष्य परंपरा के धनी हैं पांडेजी और उनके मुग्ध भावविह्वल प्रशंसकों की तो कोई कमी ही नहीं है।