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शहंशाह अकबर की जैन धर्मनिष्ठा : एक समीक्षा / 85
मुनि हीरविजयसूरि के विषय में अपने विश्वस्त दूतों का यह अनुभव सुन अकबर आनन्दमग्न हो उठा। सारे दरवारी सर्वथा असंभव, अननुष्ठेय कार्यों को सुन सूरि के प्रति पहले से भी अधिक भक्तिमान हो उठे।
शहंशाह मुनिश्री को एक और शान्त व्यक्तिगत कक्ष में ले गया जहां उसने ईश्वर, जगत, सदगुरू, सद्धर्म एवं चरित्र के विषय में गूढ प्रश्न किये। मुनि हीरविजय ने निर्भय भाव से अकबर को आत्मोद्धार का उपदेश दिया। उसके आचरण के दोषों को संकेतित किया तथा अनुकरणीय व्यवहारों की भी शिक्षा दी। परन्तु जब उसने सांसारिक प्रश्न किया कि 'महाराज आप तो सर्वज्ञ हैं।' बतायें कि मेरी कुण्डली में सम्प्रति मीन राशि पर जो शनि संक्रान्त हो उठा है उसका मुझे क्या फल होगा, तो हीरविजयसूरि साफ मुकर गये और बोले शहंशाह, मैं तो बस मोक्षमार्ग का उपदेशक हूँ! यह ग्रहों का फलाफल बताना तो गृहस्थों का काम है जो आजीविकार्थ ज्योतिष का आश्रय लेते है।
अकबर आचार्य हीरविजय की स्पष्टवादिता पर रीझ उठा। शाम हो गई थी। शहंशाह आचार्यश्री के साथ बाहर सभामण्डप मे आया और अबुल फजल से सूरि जी के गहन, ज्ञान, नि:स्पृहता तथा परमहंसता की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा। अबुल फजल ने भी हीरविजय के शिष्य शान्तिचन्द्र की वैसी ही प्रशंसा की।
इस घटना के बाद ही शहंशाह ने अपने अन्तरंग सहचर तथा सम्प्रति स्वर्गीय पद्यसुन्दर के ग्रंथ आचार्य को देने चाहे। पहले तो उन्होंने 'परिग्रह' का बहाना लेकर लेने से अस्वीकार किया परन्तु बाद में विद्वान अबुलफजल के समझाने से स्वीकार कर लिया और सारे ग्रन्थ आगरा के एक जैन आश्रम में सुरक्षित रखवा दिये।
सम्राट ने सोना, चाँदी, राज्य, जागीर, वाहन, कुछ भी स्वीकारने के लिये बड़ा यत्न किया परन्तु निस्पृह हीरविजय ने कुछ भी लेने का निषेध किया और शहंशाह की श्रद्धाविगलित मन:स्थिति को देखते हुए निवेदन किया राजन्! आपको मैंने जीवनोदेश्य तथा मुनिधर्म का उपदेश दिया। मेरी इच्छा केवल आत्मसाधन की है। यदि आप मुझे ऐसी वस्तुएं दें जिससे मेरा आत्मकल्याण हो तो प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करूँगा। इस भूमिका के बाद ही आचार्यश्री ने कहा- शहंशाह!
→ जो कैदी वर्षों से जेलखाने मे सड़ रहे हैं उन्हें दया करके मुक्त कर दीजिये। → जो निर्दोष पक्षी पिंजरों में बन्द है और स्वतंत्र जीवन सुख से वंचित हो गये हैं, उन्हें खुले आसमान में उड़ा दीजिये।
- आपके शहर के पास जो 12 कोस लम्बा डाबर नामक तालाब जिसमे रोज हजारों जाल डाले जाते हैं उसे बन्द करा दीजिये।
» हमारे पर्युषण के आठ दिनो में अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में जीवहिंसा बन्द रखने का फरमान जारी करा दीजिये।
शहंशाह की चेतना पूर्णत: सूरि महाराज के अधीन थी। उसने बिना कुछ कहे सब स्वीकार कर लिया और बोलायह सब तो आपने दूसरों के लिये मांगा। अब आप अपने लिये भी तो कुछ कहें? ___महामुनि हीरविजय ने कहा- नरेश्वर! संसार के समस्त प्राणियों को मैं अपना ही प्राण मानता हूँ। अत: उनके हित के लिये आप द्वारा जो कुछ भी किया जायेगा वह मेरे ही हित के लिये होगा। मैं ऐसा मानूंगा।'
शहंशाह ने सूरिवर्य की आज्ञा स्वीकार कर ली। कैदियों को मुक्त करने की आज्ञा तो तत्काल सुना दी तथा प्रयूषण के आठ दिनों में चार दिन अपनी ओर से जोड़ कर, बारह दिनों तक हर प्रकार जीवहिंसा न किये जाने के छ फरमान जारी करा दिये जो क्रमश: गुजरात, मालवा, अजमेर, दिल्ली, फतेहपुर, लाहौर, मुल्तान सूबों के लिये थे। छठा फरमान शहंशाह ने सूरि जी के नाम लिखवाया जिसमें उन्हें पांचों सूबों के जीवहत्या निषेध की सूचना दी गई थी। __ सम्राट ने निवेदन किया कि प्रजाओ में अधिकांश मांसाहारी है, अत: उन्हें यह राजाज्ञा रूचेगी नहीं। परन्तु मैं उन्हें समझा बुझा कर जीववध को पूर्णत: बन्द करा दूंगा। मैं स्वयं भी आज से न शिकार करूंगा (और न ही नित्य मांसाहार करूंगा।)