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________________ 83 आदिकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियाँ भक्तिरस को उड़ेलता है। जिनपद्मकृत स्थूलिभद्रफागु, राजशेखर सूरिकृत नेमिनाथ फागुआदि रचनायें उदाहरणीय हैं। ऋतुओं से संबंधित साहित्यिक विधाओं में धमाल, बारहमासा, होली आदि भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। इनमें बारहमासा विशेष लोकप्रिय रहे हैं। पाल्हण और विनयचन्द्र के नेमिनाथ बारहमासा बहुत प्रसिद्ध हैं। इसमें कवि अपने श्रद्धास्पद देव या आचार्य के बारहमासों की दिनचर्या का यथावत् आख्यान करता है। विवाहलो में साधक कवि अपने भक्ति भाव को पिरोकर चरितनायकों के विवाह प्रसंगों का वर्णन करता है। इसे मंगल, बेलि, संयमश्री, धवल आदि नामों से भी जाना जाता है। सोममूर्तिगणि कृत जिनेश्वर सूरि संयमश्री वर्णनारास, मेरुनन्दनकृत जिनोदय सूरि विवाहलौ, जिनपति सूरि धवल, जयशेखर कृत नेमिनाथ धवल इसके उदाहरण हैं। जिनचन्द्रसूरि विवाहलउ एक रूपक काव्य है। महेश्वरसूरि की ‘संयम मंजरी' रचना भी इसी विधा में समागत है। काव्यरूप अपभ्रंश की काव्यविद्या आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में अनेक रूपों में प्रवाहित हुई है। चरित, आख्यान, संधि, लावणी आदि सभी कुछ इसी के अंग हैं। प्रबन्ध काव्यों को छन्द, प्रबन्ध, रास-रासो, चरिउ आदि कहा गया है। समरारास, पेथड़-रास, वस्तुपाल-तेजपाल रास, वस्तुतः प्रबन्ध काव्य हैं। गणपतिकृत माधवानल, जयशेखरसूरिकृत त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध लाख का जिणदत्तचरिउ, वरदत्त का वैरसामिचरित्र हरिभद्रसूरि का नेमिनाहचरिउ, हरिदेव का मयणपराजयचरिउ ऐसी ही आदिकालीन रचनायें हैं।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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