SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना दामनन्दि, मल्लिषेण, देवप्रभसूरि, हेमचन्द, आशाधर, जिनहर्षगणि, मेरुतुंगसूरि, विनयचन्दूसरि, गुणविजयगणि आदि का पौराणिक और ऐतिहासिक काव्य साहित्य, हरिषेण, प्रभाचन्द, सिद्धर्षि, रत्नप्रभाचार्य, जिनरत्नसूरि, माणिक्यसूरि आदि का कथा साहित्य, संस्कृत भाषा में निबद्ध हुए । इसी तरह ललित, ज्योतिष, कोश, व्याकरण, आयुर्वेद, अलंकार शास्त्र आदि क्षेत्रों में जैन कवियों ने संस्कृत भाषा के साहित्य भण्डार को भरपूर समृद्ध किया । 58 इसी युग में प्राकृत भाषा में आगमों पर भाष्य, चूर्णि व टीका साहित्य लिखा गया । कर्म साहित्य के क्षेत्र में वीरसेन, जयसेन, नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवर्ती वीरशेखरविजय, चन्दर्षि महत्तर, गर्गर्षि, जिनबल्लभगणि, देवेन्द्रसूरि, हर्षकुलगणि आदि आचार्यों ने, सिद्धान्त के क्षेत्र में हरिभद्रसूरि, कुमार कार्तिकेय, शांतिसूरि, राजशेखरसूरि, जयबल्लभ, गुणरत्नविजय आदि आचार्यों ने, आचार व भक्ति के क्षेत्र में हरिभद्रसूरि, वीरभद्र, देवेन्द्रसूरि वसुनंदि, जिनप्रभसूरि, धर्मघोषसूरि आदि आचार्यो ने, पौराणिक और कथा के क्षेत्र में शीलाचार्य, भद्रेश्वरसूरि, सोमप्रभाचार्य, श्रीचन्दसूरि, लक्ष्मणगणि, संघदासगणि, धर्मदासगणि, जयसिंहसूरि, देवभद्रसूरि, देवेन्द्रगणि, रत्नशेखरसूरि, उद्योतनसूरि, गुणपालमुनि, देवेन्द्रसूरि आदि आचार्यो ने प्राकृत भाषा में शताधिक ग्रन्थ लिखे। लाक्षणिक, गणित, ज्योतिष, शिल्प आदि क्षेत्रों में भी प्राकृत भाषा को अपनाया गया जिसने हिन्दी के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । अपभ्रंश का हिन्दी पर प्रभाव प्राकृत के ही उत्तरवर्ती विकसित रूप अपभ्रंश ने तो हिन्दी साहित्य को सर्वाधिक प्रभावित किया है। स्वयंभू ( ७-८ वीं शती) का
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy