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________________ 56 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना पुरानी हिन्दी का प्रभाव अधिक है। परन्तु वह परिमाण में श्वेताम्बर साहित्य की अपेक्षा कम दिखाई देता है। इस समूचे साहित्य में स्वतन्त्र क्रियाओं का विकास और विभक्तियों का प्रयोग स्पष्ट रूप से होने लगा था। चरित, रास, चौपई, मुक्तक, रूपक, कथा आदि काव्यविधाओं में साहित्य सृजन होता रहा। इनमें आनन्दतिलक, ठक्कर फेरु, लावण्यसमय, हीरविजय, आनन्दघन, यशोविजय, वृन्दावन, भूधरदास आदि साहित्यकारों की उच्चकोटि की रचनाएं हैं जिनसे कोई भी साहित्य गौरवान्वित हो सकता है। इस प्रसंग में बीसवीं शताब्दी के जैन साहित्य की भी बात करना अप्रासंगिक नहीं होगा। इस शताब्दी में प्राचीन जैन साहित्य के प्रकाशन ने अच्छी गति ली है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड, गुजराती, मराठी तथा हिन्दी भाषाओं का प्राचीन साहित्य प्रकाश में आया है। इस क्षेत्र में सर्वश्री अगरचन्द नाहटा, कामता प्रसाद जैन, पं. सुखलाल संघवी, डॉ. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य, पं. परमानन्द शास्त्री, पं. बालचन्द्र शास्त्री, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, पं. जुगलकिशोर मुख्तार, पं. हीरालाल जैन, पं. फूलचन्द्र सि. शास्त्री, पं. नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ. भयाणी, डॉ. प्रेमसागर जैन, डॉ. राजाराम जैन, डॉ. भागचन्द्र जैन भास्कर आदि विद्वानों ने महनीय कार्य किया है। उनके शोध ग्रन्थों ने जैनेतर विद्वानों को जैन साहित्य की ओर आकर्षित किया है। हिन्दी जैन साहित्य के प्रकाश में आ जाने से तुलनात्मक अध्ययन की दिशा को अच्छी गति मिल रही है। अब इस क्षेत्र में शोध की संभावनायें बहुत अधिक हैं।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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