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अभिमत
श्रीमती पुष्पलता जैन का यह शोध प्रबन्ध आद्योपान्त पढ़ा है। उन्होंने रहस्यवाद के सन्दर्भ को अपने ठोस प्रमाणों के साथ कुछ और आगे बढ़ाया है और हिन्दी जैन काव्य के आधार पर जैन रहस्यवाद को समुचित रूप से उपस्थित करने का अभिनव प्रयत्न किया है । अन्तिम अध्याय में जैन और जैनेतर कवियों की रहस्यवादात्मक प्रवृत्तियों का जो सुन्दर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत हुआ है वह विशेष प्रशंसनीय है । अनेक अप्रकाशित हिन्दी जैन कवियों को भी इस शोधप्रबन्ध में स्थान मिला है। भाषा एवं शैली प्रवाहमयी है, प्रभावक है और विषयानुकूल है। अतएव श्रीमती जैन का यह सारा अध्ययन स्वागतार्ह है। - डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी (परीक्षक) श्रीमती पुष्पलता जैन का अध्ययन विस्तृत और गहरा है। उन्होंने व्यापक फलक पर रहस्य - चिन्तन और रहस्य - भावना का विवेचन विश्लेषण किया है। आठ परिवर्तोमें विभाजित अपने शोध प्रबन्ध में जहाँ एक ओर उन्होंने हिन्दी साहित्य के काल-1 - विभाजन, उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आदिकालीन और मध्यकालीन जैन काव्य प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला है वहाँ दूसरी ओर रहस्य-भावना के स्वरूप, उसके बाधक एवं साधक तत्त्वों का विवेचन करते हुए जैन रहस्यभावना का सगुण, निर्गुण, सूफी व आधुनिक रहस्यभावना के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । उनका अध्ययन, आलोचना एवं गवेषणा से संयुक्त है। पंचशताधिक जैन - जैनेतर कवियों की रचनाओं का आलोड़न-विलोड़नकर उन्होंने अपने जो निष्कर्ष दिये हैं वे प्रमाणपुरस्सर होने के साथ-साथ नवीन दृष्टि और चिन्तन लिये हुए हैं ।
मुझे पूरा विश्वास है कि यह कृति हिन्दी काव्य की रहस्यधारा को समग्र रूप से समझने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगी ।
- डॉ० नरेन्द्र भानावत
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में श्रीमती पुष्पलता जैन का गम्भीर अध्ययन और चिन्तन प्रतिबिम्बित होता है। इसमें जैन रहस्यवाद की मीमांसा और प्रस्तुति सही ढंग से हुई है। प्रकाशित-अप्रकाशित हिन्दी जैन कवियों के आधार पर किया गया यह अध्ययन निःसन्देह प्रशंसनीय है ।
- डॉ० कस्तूरचन्द
कासलीवाल (परीक्षक)