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________________ काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 49 यंत्र, मुद्रा, आसन, चक्र, मंडल, स्त्री, मदिरा तथा मांस आदि वासमार्गी आवरण बौद्धधर्म में प्रचलित हो गये। शिव की पत्नी शक्ति की तरह प्रत्येकबुद्ध की भी शक्ति रूप पत्नी कल्पित हुई। इसकी तांत्रिक साधना में मैथुन को भी अध्यात्म से सम्बद्ध कर दिया गया। बंगाल में इसी को सहजमार्ग कहा जाता था । इस तांत्रिक साधना ने बौद्धधर्म को अप्रिय बना दिया। इसी समय मुस्लिम आक्रमणों से भी बौद्धधर्म को और धक्का लगा। साथ ही नन्दिवर्धन पल्लवमल्ल के समय शंकराचार्य के प्रभाव से बौद्धधर्म का निष्कासन सा हो गया। इन सभी कारणों से बौद्धधर्म ११वीं, १२वीं शताब्दी तक अपनी जन्मभूमि से समाप्तप्राय हो गया। वह अनेक रूपों में और अनेक पन्थों में समाहित हो गया। उत्तरकाल में एक तो वह विदेशों में फूला-फला और दूसरे भारत में उसने रूपान्तरणकर संतों को प्रभावित किया। मध्यकालीन हिन्दी जैन साहित्य पर बौद्धधर्म का भी प्रभाव पड़ा है। मध्यकाल तक आते-आते यद्यपि बौद्धधर्म मात्र ग्रन्थों तक सीमित रह गया था, पर बोद्धेतर धर्म और साहित्य पर उसके प्रभाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि बौद्धधर्म को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सका। महाराष्ट्र के प्राचीन संतों पर और हिन्दी साहित्य की निर्गुणधारा के सन्तों पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। डॉ. त्रिगुणायत ने मध्यकालीन धार्मिक परिस्थितियों को दो भागों में विभाजित किया है - १) सामान्य जनता में प्रचलित अनेक नास्तिक और आस्तिक पंथ और पद्धतियां, २) वे आस्तिक पद्धतियां जो उच्च वर्ग की जनता में मान्य थीं। इन धर्म पद्धतियों के प्रवर्तक तथा प्रतिपादक अधिकतर शास्त्रज्ञ आचार्य लोग थे। आगे वे लिखते हैं
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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