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संदर्भ अनुक्रमणिका ३०३. कहत कबीर तरक दुइ साथै, ताकी मति है मोही, वही, पृ. १०५। ३०४. शब्दावली, शब्द ३०। ३०५. दादूदयाल की बानी, भाग १, परचा को अंग ९३, ९८, १०९ । ३०६. उल्टी चाल मिले परब्रह्म सो सद्गुरु हमारा-कबीर ग्रंथावली, पृ. १४५। दिल
में दिलदार सही अंखियां उल्टी करिताहि चितैये-सुन्दरविलास, पृ. १५६।
उलटि देखो घर में जोति पसार-सन्तवानी संग्रह, भाग २, पृ.१८८। ३०७.
कबीर ग्रंथावली, पृ.८९।
नाटक समयसार, १७। ३०९. बनारसीविलास, परमार्थ हिन्डोलना, पृ.५। ३१०. देखिये, इसी प्रबन्ध का चतुर्थ परिवर्त, पृ.८१-८६। ३११. अध्यात्म पदावली, पृ. ३५९।
दादूवानी, भाग १. पृ. ६३। ३१३. सुन्दर विलास, पृ. १५९। ३१४. नाटक समयसार, १७।
दादूवानी, भाग १, पृ.८७। ३१६. सुन्दर विलास, पृ.१०१। ३१७. अखरावट-जायसी, पृ. ३०५, चित्रावली-उसमान, पृ. २ भाषा प्रेम
रसशेख रहीम ३१८. पद्मावत-जायसी, पृ. २५७-८, इन्द्रावती-नूरमुहम्मद, पृ.५४। ३१९. जायसी के परवर्ती हिन्दी सूफी कवि और काव्य-डां. सरल शुक्ल, लखनऊ,
सं. २०१३, पृ.१११। ३२०. वही, पृ.११३। ३२१. जायसी का पद्मावत, काव्य और दर्शन, पृ.१०७। ३२२. जेहि के हिये प्रेम रंग जाया। का तेहि भूख नींद विसराया।। जायसी ग्रंथ
माला, पृ.५८। ३२३. कहं रानी पद्मावती, जीउ वसैजेहि पांह। मोर-मोर के खाएऊं, भूलि गरब
अवगाह।। वही, पृ. १७९। ३२४. प्रेम-धाव दुख जान न कोई, वही, पृ.७४। ३२५. वही, गु.८८। ३२६. वही, पृ. २५।
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