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________________ 479 २६६. संदर्भ अनुक्रमणिका २६३. वही, पृ.३८।। २६४. वही, पृ.१०१। २६५. सूरुज चांद कै कथा जो कहेऊ। प्रेम कहानी लाइ चित्त बाहेऊ, जायसी और उनका पद्मावत, बनिजारा खण्ड-रामचन्द्र शुक्ल 'चांद के रंग में सूरज रंग गया, वही रत्नसेन भेंट खण्ड। गढ़ पर नीर खीर दुइ नदी। पनिहारी जैसे दुरपदी।। और कुंड एक मोती चुरु। पानी अमृत, कीच कपूरू। २६७. नौ पौरी तेहि गढ़ मझियारा। ओ तहं फिरहिं पांच कोटवारा। दसवं दुआर गुपुत एक ताका। आगम चढ़ाव, बाट सुठि बांका।। भेदै जाइ सोइ वह घाटी। जो लहि भेद, चढे होई चांटी।। गढ़ तर कुंड, सुरंग तेहि माहां। तहं वह पंथ कहौं तोहि पाहाँ। चोर बैठ जस सैधि संवारी। जुआ पैंत जस लाव जुआरी।। जस मरजिया समुद्र धंस, हाथ आव तब सीप। दूढि लेइ जो सरग-दुआरी चढे सौ सिंहलद्वीप।। वही, पार्वती महेश खंड'। २६८. कबीर ग्रन्थावली, पृ. ३०१। २६९. वही, पृ. १९८। वही, पृ. २७७। २७१. कबीर ग्रन्थावली, पृ.१४५। २७२. सहज-सहज सब कोऊ कहे सहज न चीन्हे कोय। जो सहजै साहब मिले सहज कहावै सोय। सहजै-सहजै सब गया सुत चित काम निकाम। एक मेक हवै मिलि रहा दास कबीरा जान। कड़वा लागे नीम सा जामे एचातानि। सहज मिले सो दूध-सा मांगा मिले सो पानि। कह कबीर वह रकत सम जामै एचातानि। संत साहित्य, पृ. २२२-३। २७३. ब्रह्म अगिनि में काया जारै, त्रिकुटी संगम जागै। कहै कबीर सोइ जागेश्वर, सहज सूंनि त्यौलागै।। कबीर ग्रन्थावली, पृ.१०९। २७४. कबीर दर्शन, पृ. २९७-३४७। २७५. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी - कबीर परिशिष्टः कबीर वाण, पृ. २६२। २७६. संत कबीर, रामकुमार वर्मा, पृ.५१, पद ४८; संत साहित्य, पृ. ३०४-५। २७७. दोहाकोष, पृ. ४६। २७८. कबीर ग्रन्थावली, पृ. २६९, मध्यकालीन हिन्दी संत-विचार और साधना, पृ.५३१। २५०
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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