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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ससै खाया सकल जग, ससा किनहूंन खद्ध, वही, पृ.२-३। १२१. वही, पृ.४। १२२. जायसी ग्रन्थमाला, पृ.७। १२३. गुरु सुआजेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ।।पद्मावत । १२४. गुरु होइ आप, कीन्ह उचेला, जायसी ग्रन्थावली, पृ. ३३। १२५. गुरु विरह चिनगीजो मेला। जो सुलगाइ लेइ सोचेला।। वही, पृ.५१ । १२६. जायसी ग्रंथावली, स्तुतिखण्ड, पृ.७। १२७. जोग विधि मधुबन सिखिहैं जाइ। बिनु गुरु निकट संदेसनि कैसे, अवगाह्यौ
जाइ। सूरसागर (सभा), पद ४३२८। १२८. वही, पद ३३६। १२९. सूरसागर, पद ४१६, ४१७; सूर और उनका साहित्य। १३०. परमेसुर से गुरु बड़े गावत वेद पुरान-संतसुधासार, पत्र १८२। १३१. आचार्य क्षितिमोहन सेन-दादू औरर उनकी धर्मसाधना, पाटल सन्त
विशेषांक, भाग १, पृ. ११२। १३२. बलिहारी गुरु आपणों द्यौ हांड़ी के बार। जिनि मानिषतें देवता, करत न
लागी बार।। गुरु ग्रंथ साहिब, म १, आसादीवार, पृ.१। १३३. सुन्दरदास ग्रंथावली, प्रथम खण्ड, पृ.८। १३४. रामचरितमानस, बालकाण्ड १-५। १३५. गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई जो विरंचि संकर सम होई। बिन गुरु होहि
कि ज्ञान ज्ञान कि होइ विराग विनु। रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, ९३। १३६. वही, उत्तरकाण्ड, ४३१४। १३७. बनारसीविलास, पंचपद विधान, १-१० पृ. १६२-१६३।
हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ.११७। १३९. ज्यौं वरषै वरषा समै, मेघ अखंडित धार। त्यौं सद्गुरु वानी खिरै, जगत जीव
हितकार।। नाटक समयसार, ६, पृ. ३३८५
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