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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना मेरे मन तिरपत क्यों नहि होय, अनादिकाल नै विषयनराच्यो, अपना सरवस खोय।। बुधजन, वही, पृ. १९७। ब्रह्मविलास, मनवत्तीसी, पृ. २६२। मनकरहारास, १, अमीर शास्त्र भंडार, जयपुर में सुरक्षित हस्तलिखित प्रति तुलनार्थदृष्टव्य-जैनशतक, भूधरदास, ६७, पृ. २६ । तित्थई तित्थु भमं ताहं मुहं मोक्खण होइ। णाण विवज्जिउ जेण जिय मुणिवरु होइण सोई ।५८। परमात्मप्रकाश, द्वि. महा०, पृ. २२७ । पत्तिय पाणिउ दग्ध तिल सव्वहं जाणि सवण्णु। ज पुणु मोक्खहं जाइवउ तं कारणु कुइ अण्णु ।। -पाहुडदोहा, १५९। मोक्खपाहुड़ ६१; भावपाहुड़ २। हिन्दी काव्यधारा - सं. राहुल सांकृत्यायन, पाखण्ड-खण्डन (छाया)
पृ.५, तुलनार्थ दृष्टव्य है - ब्रह्मविलास, शतअष्टोत्तरी, ११. पृ.१०।। ९५. पाहन पूजे हरि मिलै तो मैं पूजू पहार। तातें ये चाकी भली पीसि खाय
संसार।। संतवाणी संग्रह, भाग-१, पृ. ६२। मूड़ मुड़ाये हरि मिलैं सब कोई लेय मुड़ाय। बार-बार के मूड़ते भेड़ न बैकुण्ठ जाय।। माला फेरत जुग गया, पाय न मन का फेर। करका मनका छांडि दे मनका मनका फेर ।। कबीर ग्रन्थावली, पृ. ४५। जायसी का पद्मावत - डॉ.गोविन्द त्रिगुणायत, पृ.१५७। नागैं फिरै जोग जो होई, बन का मृग मुकति गया कोई। मूड़ मुड़ायै जो सिधि होई, स्वर्ग ही भेड़न पहुंची कोई।। नन्दराखि जे खेले है भाई, तो दूसरे कौण
परम गति पाई।।३२।। कबीर ग्रन्थावली, पृ. २३। १००. सुन्दरविलास, पृ. २३। १०१. संत सुधासार, भाग-२, पृ. ५८। १०२. भीखा साहब की वानी, पृ.५। १०३. विनयपत्रिका, पद १२९। १०४. तुलसी ग्रन्थावली, पृ. २००। १०५. नाटक समयसार, सर्वविशुद्धि द्वार, ९६-९७।