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________________ 468 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ५८. ६०. ६१. हिन्दी पद संग्रह, पृ.१५४। अवधू ऐसो ज्ञान विचाररी, वामें कोण पुरुष कोण नारी। बाह्मन के घर न्हाती धोती, बाह्मन के घर चेली। कलमा पढ़ पढ़ भई रे तुरकड़ी, तो आप ही आप अकेली।। ससरो हमारो बालो भोलो, सासू बाल कुंवारी। पिचजू हमारे होढ़े पारणिय, तो मैं हूं झुलावनहारी।। नहीं हूं पटणी, नहीं हूं कुंवारी पुत्र जणावन हारी। काली दाड़ी को मैं कोई नहीं छोड़यो, तो हजुए हं बाल कुंवारी।। अढी द्वीप में खाट खटूली, गगन उशीकु तलाई। धरती को छेड़ो, आम की पिछोड़ी, तोमन सोड भराई।। गगन मंडल में गाय बिआणी, वसुधा दूध जमाई। उस रे सुनो माइ वलोणूं बलोवे, तो तत्त्व अमृत कोई पाई।। नहीं जाऊं सासरिये ने नहीं जाऊं पीहरिये, पियजू की सेज बिछाई। आनन्दघन कहै सुना भाई साधु, तो ज्योत से ज्योत मिलाई। आनन्दघन बहोत्तरी, पृ. ४०३-४०५। कबीर ग्रंथावली, पद २३१, पृ. ४२७-२८) तुलसीरामायण, अयोध्याकाण्ड, ३२३-४ । मलूकदास, भाग २, पृ.१६। दादू, भाग १, पृ. १३१। यह संसार सपन कर लेखा, विछरि गये जानों नहिं देखा, जायसी ग्रन्थावली, पृ.५५। जेसे सुपने सोइ नेखियत तैसे यह संसार, सूरसार, पृ. २००। मोह निसा सब सोवनि द्वारा, देखिअ सपन अनेक प्रकारा, मानस, पृ.४५८। हिन्दी पद संग्रह, पृ.१५४। तम मोह लोभ अंहकारा, मद, क्रोध बोध रिपु भारा। अति करहि उपद्रव नाथा, मर्दहि मोहि जानि अनाथा। सन्तवाणी संग्रह भाग २, पृ. ८६ तुलनार्थदेखिये, कबीर ग्रन्थावली, पृ. ३११ सूरसागर १५३, पृ.८१। काहे को क्रूर करे अति, तोहि रहैं दुख संकट घेरे। काहे को मान महाश रखावत, आवत काल छिने छिन तेरे।। काहे को अंध तुबंधन मायासौ, यज ६८. ६९.
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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