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संदर्भ अनुक्रमणिका
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१०४. देह और जीव के सम्बन्ध की अज्ञानता ही मिथ्यात्व है दीघनिकाय के ब्रह्मजाल सुत्त में इस प्रकार की ६२ मिथ्यादृष्टियों का उल्लेख है - १८ आदि सम्बन्धी और ४४ अन्त सम्बन्धी । इनमें शाश्वतवाद, अमरविक्षेपवाद, उच्छेदवाद, तज्जीवतच्छरीरवाद, संज्ञीवाद, असंज्ञीवाद जैसे वाद अधिक प्रसिद्ध थे। सूत्रकृतांग में सप्ततत्त्व या नव पदार्थों के आधार पर यही संख्या ३६३ बतायी गई है । क्रियावाद १८०, अक्रियावाद ८४, अज्ञानवाद ६७ और वेनयिकवाद ३२। जैन बौद्ध साहित्य में यह परम्परा लगभग समान है। विशेष देखिए, डॉ. भागचन्द्र भास्कर की पुस्तक बौद्ध संस्कृति का इतिहास
प्रथम अध्याय ।
१०५. लाल वस्त्र पहिरेसों देह तो न लाल होय, लाल देह भये हंस लाल तौ न मानिये। वस्त्र के पुराने भये देह न पुरानी होय, देह के पुराने जीव जीरन न जानिये ।। वसन के नाश भगे देह को न नाश होय, देह के न नाश हंस नाश न बछानिये। देह दर्व पुद्गल की चिदानन्द ज्ञानमयी, दोऊ भिन्न-भिन्न रूप 'भैया' उर आनिये।।१०।। (ब्रह्मविलास, आश्चर्य चतुर्दशी, १०, पृ. १९१) ।
१०६.
१०७.
नाटक समयसार, अजीवद्वार, ७, ९ पृ. ५८-६०। मोक्ख पाहुड़,
६१ ।
१०८.
भाव पाहुड़, २ ।
१०९. पाहुड़, दोहा १३५, परमात्म प्रकाश, २.७० ।। ११०. बनारसी विलास, मोक्षपैड़ी, ८पृ. १३२ ।
१११. ब्रह्मविलास, शत अष्टोत्तरी ११, पृ. १० । ११२. उपदेश दोहाशतक, ५-१८ ।
११३. मदनमोहन पंचशती, छत्रपति, ९९, पृ. ४८ ।
११४. वही, १०३-१०५।
११५. अध्यात्म पदावली, पृ. ३४१ ।
११६. शिव चाहै तो द्विविध धर्म तैं, कर निज परनति न्यारी रे । दौलत जिन जिन भाव पिछाण्यौ, तिन भवविपति विदारी रे।। वही, पृ. ३३२ ।
११७. बनारसी विलास, कर्म छत्तीसी, ३७, पृ. १३९ ।
११८.
नाटक समयसार, जीवद्वार, २३ ।