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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ८५. परमात्मप्रकाश, १-२५, पृ. ३२। ८६. निराकार चेतना कहवे दरसन गुन साकार चेतना सुद्धज्ञान गुन सार है। नाटक
समयसार, मोक्षद्वार, १०।
बनारसीदास, नाममाला, ईश के नाम, ब्रह्मविलास, सिद्धचतुर्दशी, १-३। ८८. द्यानतपद संग्रह ५८, बनारसीविलास, अध्यात्मफागु, पृ. १५४।
अध्यात्मवावनी, गुर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ. ४६६-६७।
पांडें रूपचन्द, परमार्थी दोहाशतक, जैत हितैषी, भाग ६, अंक ५-६। ९१. मनरामविलास, १५ ठोलियों के दि. जैन मंदिर, वैष्टन नं. ३९५ में संकलित
हस्तलिखित प्रति, मनमोदन पंचशती, ४२ पृ.२०। एकहि ब्रह्म असंख्य प्रदेश। गुण अनंत चेतनता भेष।। शक्ति अनंत लसै जिस माहिं। जासम और दूसरो नाहिं।।२।। पर का परस रंच नहिं जहां। शुद्ध सरूप कहावै तहां।। अविनाशी अविचल अविकार। सो परमातम है निरधार।।६।।
-ब्रह्मविलास, परमात्मा कीजयमाल; पृ.१०४। ९३. ब्रह्मविलास, मिथ्यात्व विध्वंस न चतुर्दशी, जयमाल, पृ.१०४। ९४. वही, सिद्ध चतुदर्शी, १-४ पृ. १३४; सुबुद्धि चौबीसी ७-९ पृ. १५९, फुटकर
कविता; पृ. २७३। ९५. वही, ब्रह्माब्रह्म निर्णय चतुदर्शी, पृ. १७१, फुटकर कविता, १,
पृ. २७२-७३। ९६. वही, जिनधर्मपचीसिका, १३ पृ. २१४। ९७. वही, परमात्मा छत्तीसी, ९ पृ. २२८। ९८. वही, ईश्वरनिर्णयपचीसी, १ पृ. २५२; परमात्मशतक, पृ. २७८-२९१। ९९. हिन्दी पद संग्रह, भट्टारक रत्नकीर्ति, पृ.३। १००. ज्यों कोठी में धान थी, चमी मांहि कनकबीच। चमी धेय कम राखिये, कोठी
धोए कीच।।११।। कोठी सम नोकर्म मल, द्रव्य कर्म ज्यों धान। भावकर्ममल ज्यों, चमी, कन समान भगवान।।१२।। बनारसी विलास, अध्यातम बत्तीसी
११-१२, पृ.१४४। १०१. वही, अध्यातम बत्तीसी, १३-३२। १०२. नाटक समयसार, जीवद्वार, १३। १०३. नाटक समयसार, जीवद्वार ३५ पृ.५२।