SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 432 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना समर्थ नहीं। अतः उसकी गुह्यता को स्वर देने के लिए जैन साधक कवियों ने निर्झर, हंस, तुरंग, मिट्टी आदि उपकरणों को चुना। आधुनिक रहस्यवाद में भी इन उपकरणों का उपयोग किया गया है परन्तु साथ ही उसमें कुछ अभारतीय प्रतीकों का भी समावेश हो गया है। ४) आधुनिक रहस्यवाद धार्मिक दृष्टिकोण के अभाव में मात्र एक कल्पना प्रधान काव्य शैली बनकर सामने आया है, परन्तु प्राचीन रहस्यवाद में उसका अनुभूति पक्ष कहीं अधिक प्रबल दिखाई देता है। ५) प्राचीन रहस्यसाधना में दाम्पत्यमूलक प्रेम को साध्य की प्राप्ति में एक विशिष्ट साधन माना गया है। निर्गुण रहस्यवादी भी इस प्रेम से नहीं बच सके। सगुणवादियों का ब्रह्म भी अविगत और अगोचर हो गया। परन्तु आधुनिक कवि इतने अधिक साधक नहीं बन सके। उनकी साधना सूखे फूल की मुझायी पंखुड़ियों के समान प्रतीत होती है। उसमें साधना की सुगन्धि नहीं। वह तो प्रेम और वासना की बू से प्रतीकों की मात्र कहानी है। ६) प्राचीन जैन रहस्यवादियों के काव्य में दार्शनिक और आध्यात्मिक पक्ष की सुन्दर समन्वित भूमिका मिलती है पर आधुनिक रहस्यवाद में दार्शनिक पक्ष गौण हो गया है। व दाम्पत्यमूलक सूत्र के साथ रागात्मक सम्बन्ध के विशिष्ट योग में ब्रह्म मिलन की आतुरता छिपी हुई है। ७) मध्यकालीन जैन रहस्यवाद में संसारी आत्मा ही अपने विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने के लिए तड़पती है और उसके वियोग में
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy