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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 415 ऊंची अटरिया, लाल किवड़िया, निर्गुन सेज बिछी। पंचरंगी झालर सुभ सोहे फूलत फूल कली।। बाजू बन्द कडू ला सो हैं मांग सेंदूर भरी। सुमिरण थाल हाथ में लीन्हा सोभा अधिक भरी।। सेज सुखमणां मीरा सोवै सुभ है आज घड़ी।।२६७ जिनका प्रियतम परदेश में रहता है उन्हें पत्रादि के माध्यम की आवश्यकता होती। पर मीरा का प्रिय तो उनके अन्तःकरण में ही वसता है, उसे पत्रादि लिखने की आवश्यकता ही नहीं रहती। सूर्य, चन्द्र आदि सब कुछ बिनाशीक है । यदि कुछ अविनाशी है तो वह है प्रिय परमात्मा। सुरति और निरति के दीपक में मन की वाती और प्रेमहटी के तेल से उत्पन्न होने वाली ज्योति अक्षुण्ण रहेगी - जिनका पिया परदेश वसत है लिख लिख भेजें पाती। मेरा पिया मेरे हीयवत है ना कहूं आती जाती।। चन्दा जायगा सूरज जायगा जायगा धरणि अकासी। पवन पानी दोनों हूं जांयेगे अटल रहै अविनाशी।। सुरत निरत का दिवला संजीले मनसा की करले वाती। प्रेम हटी का तेल मंगाले जग रहया दिन ते राती। सतगुरु मिलिया संसा भग्या सेन बताई सांची।। ना घर तेरा ना घर मेरा गावै मीरा दासी।।३६८ डॉ. प्रभात ने मीरा की रहस्य भावना के सन्दर्भ में डॉ. शर्मा और डॉ. द्विवेदी के कथनों का उल्लेख करते हुए अपना निष्कर्ष दिया है। निर्गुण भक्त बिना बाती, बिना तेल के दीप के प्रकाश में पारब्रह्म के जिस खेल की चर्चा करता है, यह मूलतः सगुण भक्तों की ‘हरिलीला' से विशेष भिन्न नहीं है। डॉ. मुंशीराम शर्मा ने वेद, पुराण, तन्त्र और
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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