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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 369 के बिना सच्ची कृपा करने वाला कौन है ? गुरु भवसागर में डूबते हुए को बचाने वाला और सत्पथ का दीपक है। सहजोबाई भी कबीर के समान गुरु को भगवान से भी बड़ा मानती है। दादू लोकिक गुरु को उपलक्ष्य मात्र मानकर असली गुरु भगवान को मानते हैं।"नानक भी कबीर के समान गुरु की ही बलिहारी मानते हैं। जिसने ईश्वर को दिखा दिया अन्यथा गोविन्द का मिलना कठिन था।३२ सुन्दरदास भी "गुरुदेव बिना नहीं मारग सूझय' कहकर इसी तथ्य को प्रकट करते हैं। तुलसी ने भी मोह भ्रम दमर होने और राम के रहस्य को प्राप्त करने में गुरु को ही कारण माना है। रामचरितमानस के प्रारम्भ में ही गुरु वन्दना करके उसे मनुष्य के रूप में करुणासिन्धु भगवान माना है गुरु का उपदेश अज्ञान के अंधकार को दूर करने के लिए अनेक सूर्यो के समान है - बंदऊं गुरुपद कंज कृपासिन्धु नररूप हरि । महामोह तम पुंज जासुवचन रवि कर निकर ।।१३४ कबीर के समान ही तुलसी ने भी संसार को पार करने के लिए गुरु की स्थिति अनिवार्य मानी है। साक्षात् ब्रह्मा और विष्णु के समान व्यक्तित्त्व भी, गुरु के बिना संसार से मुक्त नहीं हो सकता। सद्गुरु ही एक ऐसा दृढ़ कर्णधार है जो जीव के दुर्लभ कामों को भी सुलभ कर देता है - करनधार सद्गुरु दृढ़ नावा, दुर्लभ साजसुलभ करि पावा। २६ मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने भी गुरु को इससे कम महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने तो गुरु को वही स्थान दिया है जो अर्हन्त को
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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