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रहस्यभावना के बाधक तत्त्व आसक्ति पैदा हो गई। कूप के निम्न भाग में चार विकराल अजगर मुँह फैलाये उस व्यक्ति की ओर निहार रहे थे। इधर हाथी अपनी सूड़ से वृक्ष शाखा को झकझोर रहा था और जिस शाखा से वह लटका था उसे दो चूहे काट रहे थे। मधुमक्खियां भी उस पर आक्रमण कर रही थीं। इस कथा में संसार महावत है, भवभ्रमण कूप के समान है, गज यम है, मधुमक्खियों का काटना रागादिका आक्रमण है, अजगर का कूप में होना निगोद का प्रतीक है, चार अजगर चतुर्गति के प्रतीक है, मधुबिन्दु सांसारिक सुखाभास है, दो चूहे कृष्ण शुक्लपक्ष के प्रतीक है। कविवर भगवतीदास ने भी इसी कथा का आधार लेकर संसार का चित्रण किया है।
कवि वूचराज ने संसार को टोड (व्यापारियों का चलता हुआ समूह) कहा है और अपने टंडाणागीत में परिवार के स्वार्थ का सुन्दर चित्रण किया है :
'मात पिता सुत सजन सरीर दुहु सब लोग विराणावे। इयण पंखजिम तरुवर वासे दसहं दिशा उडाणावे।। विषय स्वारथ सब जग वंछै करि करि बुधि बिनाणावे। छोडि समाधि महारस नूपम मधुर विन्दु लपटाणावे।।
संसार के इस चित्रण में कवि साधकों ने एक ओर जहां संसार की विषय वासना में आसक्त जीवों की मनःस्थिति को स्पष्ट किया है वहीं दूसरी ओर उससे विरक्त हो जाने का उपदेश भी दिया है। इन दोनों के समन्वित चित्रण में साधक टूटने से बच गया। उसका चिन्तन स्वानुभूति के निर्मल जल से निखरकर आगे बढ़ गया। जैन कवियों के चित्रण की यही विशेषता है। २. शरीर का ममत्व
रहस्य साधकों के लिए संसार के समान शरीर भी एक चिन्तन