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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना
रहस्यभावना किंवा रहस्यवाद के प्रकार
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रहस्यभावना अथवा रहस्यवाद के प्रकार साधनाओं के प्रकारों पर अवलम्बित है। विश्व में जितनी साधनायें होगी, रहस्यवाद के भी उतने भेद होंगे। उन भेदों के भी प्रभेद मिलेंगे। उन सब भेदों-प्रभेदों को देखने पर सामान्यतः दो भेद किये जाते हैं। भावनात्मक रहस्यवाद और साधनात्मक रहस्यवाद। भावनात्मक रहस्यवाद अनुभूति पर आधारित है और साधनात्मक रहस्यवाद समतावादी आचार-विचार युक्त योगसाधना पर। दोनों का लक्ष्य एक ही है। परमात्मपद अथवा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति में परमपद से विमुक्त आत्मा द्वारा उसकी प्राप्ति के संदर्भ में प्रेम अथवा दाम्पत्य भाव टपकता है। अभिव्यक्ति की असमर्थता होनेपर प्रतीकात्मक रूप में अपना अनुभव व्यक्त किया जाता है। योग साधनों को भी वह स्वीकार करता है और फिर भावावेश में आकर अन्य आध्यात्मिक तथ्यों किंवा सिद्धान्तों का निरूपण करने लगता है। अतः डॉ० त्रिगुणायत के स्वर में हम अपना स्वर मिलाकर रहस्यभावना किंवा रहस्यवाद के निम्न प्रकार कह सकते हैं -
१. भावात्मक या प्रेम प्रधान रहस्य भावना,
२. अभिव्यक्तिमूलक अथवा प्रतीकातमक रहस्यभावना, ३. प्रकृतिमूलक रहस्य भावना,
४. यौगिक रहस्य भावना, और
५. आध्यात्मिक रहस्य भावना ।
रहस्य भावना के ये सभी प्रकार भवनात्मक और साधनात्मक रहस्यभावना के अन्तर्गत आ जाते हैं । उनकी साधना अन्तर्मुखी और