________________
हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना
हो सकता अथवा कवि योगी नहीं हो सकता । काव्य का तो सम्बन्ध भाव से विशेषतः होता है और साधक की रहस्यानुभूति भी वही से जुड़ी हुई होती है । अतः इतिहास के पन्ने इस बात के साक्षी है कि उक्त दोनों व्यक्तित्व समरस होकर आध्यात्मिक साधना करते रहे हैं। यही कारण है कि योगी कवि हुआ है और कवि योगी हुआ है। दोनों ने रहस्यभावना की भावात्मक अनुभूति को अपना स्वर दिया है ।
176
प्रस्तुत प्रबन्ध में हमने उक्त दोनों व्यक्तित्त्वों की प्रतिभा, अनुभूति और सजगता को परखने का प्रयत्न किया है। इसलिए रहस्यवाद के स्थान पर हमने 'रहस्यभावना' शब्द को अधिक उपयुक्त माना है। भावना अनूभूतिपरक होती है और वाद किसी धर्म, सम्प्रदाय अथवा साहित्य से सम्बद्ध होकर ससीमित हो जाता है। इस अन्तर के होते हुए भी रहस्यभावना का सम्बन्ध अन्ततोगत्वा चूंकि किसी साधना विशेष से सम्बद्ध रहता है इसलिए वह भी कालान्तर में अनुभूति के माध्यम से एक वाद बन जाता है। इसलिए 'रहस्यवाद' लोकप्रिय हो गया ।
अध्यात्मवाद और दर्शन
जहां तक अध्यात्मवाद और दर्शन के सम्बन्ध का प्रश्न है, वह परस्पराश्रित है। अध्यात्मवाद योग साधना है जो साक्षात्कार करने का एक साधन है और दर्शन उस योग साधना का बौद्धिक विवेचन है अध्यात्मवाद अनुभूति पर आधारित है जबकि दर्शन ज्ञान पर आधारित है। अध्यात्मवाद तत्त्व ज्ञान प्रधान है और दर्शन उसकी पद्धति और विवेचन करता है। इस प्रकार दर्शन अध्यात्मवाद से भिन्न नहीं हो सकता। अध्यात्मवाद की व्याख्या और विश्लेषण दर्शन की