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________________ चतुर्थ परिवर्त रहस्य भावना एक विश्लेषण रहस्यः शाब्दिक अर्थ, अभिव्यक्ति और प्रयोग सृष्टि के सर्जक तत्त्व अनादि अनन्त हैं । उनकी सर्जनशीलता प्राकृतिक शक्तियों के संगठित रूप पर निर्भर करती है । पर उसे हम प्रायः किसी अज्ञात शक्ति विशेष से सम्बद्ध कर देते हैं जिसका मूल कारण मानसिक दृष्टि से स्वयं को असमर्थ स्वीकार करना है । इसी असामर्थ्य पैदा करने वाले सत्यं शिवं सुन्दरम् तत्त्व की गवेषणा और स्वानुभूति की प्राप्ति के पीछे हमारी रहस्य भावना एक बहुत बडा सम्बल है । साधक के लिए यह एक गुह्य तत्त्व बन जाता है जिसका सम्बन्ध पराबौद्धिक ऋषि महर्षियों की गुह्य साधना की पराकाष्ठा और उसकी विशुद्ध तपस्या से जुड़ा है । प्रत्येक दृष्टा के साक्षात्कार की दिशा अनुभूति और अभिव्यक्ति समान नहीं हो सकती । उसका ज्ञान और साधनागम्य अनुभव अन्य प्रत्यक्षदर्शियों के ज्ञान और अनुभव से पृथक् होने की ही सम्भावना अधिक रहा करती है फिर भी लगभग समान मार्ग को किसी एक पन्थ या सम्प्रदाय से जोडा जाना भी अस्वाभाविक नहीं । जिस मार्ग को कोई चुम्बकीय व्यक्तित्व प्रस्तुत कर देता है । उससे उसका चिरन्तन सम्बन्ध जुड जाता है और आगामी शिष्य परम्परा उसी मार्ग का अनुसरण करती रहती है। यथासमय इसी
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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