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________________ 149 मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियां आधुनिक काल में गीतिकाव्य का और भी विकास हुआ। व्यक्ति की परिस्थितियां बदलती गईं और वह सांसारिकता में फंसता गया। फिर भी संस्कारों ने उसे स्वयं को खोजने के लिए विवश कर दिया। भावों के संसार ने आध्यात्मिकता की ओर खींचकर उसे सत्य पर प्रतिष्ठित होने का आमन्त्रण दिया। जैन कवियों ने इस आमन्त्रण को अपने काव्य-सृजन में उतारा। शताधिक जैन कवियों ने गीतिकाव्य लिखे। आधुनिक जैनकवि, अनेकान्त काव्य संग्रह और आधुनिक जैन कविः चेतना के स्वर नाम से प्रकाशित संकलन इसके उदाहरण हैं। युगल किशोर मुख्तार और भागचन्द्र भास्कर ने मेरी भावना लिखकर गीतिकाव्य को नया रूप दिया। नरेन्द्र भानावत, शान्ता जैन, मिश्रीलाल जैन, जुगलकिशोर युगल, सरोज कुमार जैन, कल्याणकुमार शशि, रूपवती किरण, महेन्द्र सागर प्रचण्डिया आदि शताधिक कवियों ने इस क्षेत्र में नये मानदण्ड स्थापित किये हैं। चूंकि आधुनिक काल को हमने अपनी अध्ययन परिधि से बाहर रखा है, इसलिए हम इस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं । १४. प्रकीर्णक काव्य प्रकीर्णक काव्य में यहां हमने लाक्षणिक साहित्य, कोश, गजल, गुर्वावली आत्मकथा आदि विधाओं को अन्तर्भूत किया है। इन विधाओं की ओर दृष्टिपात करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन कवि अध्यात्म और भक्ति की ओर ही आकर्षित नहीं हुए बल्कि उन्होंने छन्द, अलंकार, आत्मकथा, इतिहास आदि से सम्बद्ध साहित्य की सर्जना में भी अपनी प्रतिभा का उपयोग किया है। लाक्षणिक साहित्य में पिंगल शिरोमणि, छन्दोविद्या, छन्द मालिका, रसमंजरी, चतुरप्रिया, अनूपरसाल, रसमोह, श्रृंगार,
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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