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________________ 134 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना सकलकीर्ति (१६वीं शताब्दी) की कर्पूरकथ बेलि, महारक वीरचंद की जम्बूस्वामी बेलि (सं १६९०), ठकुरसी की पंचेन्द्रिय बेलि (सं १५७८), मल्लदास की क्रोधबेलि (सं १५८८), हर्षकीर्ति की पंचगति बेलि (सं १६८३), ब्रह्म जीवंधर की गुणणा बेलि (१६वीं शताब्दी), अभयनंदि की हरियाल बेलि (सं १६३०), कल्याणकीर्ति की लघुबाहुबली बेलि (सं १६९२), लाखाचरण की कृष्णरुक्मणि बेलि टब्बाटीका (सं १६३८), तथा ६वीं शती के वीरचन्द, देवानंदि, शांतिदास, धर्मदास की क्रमशः सुदर्शन बलि, जम्बूस्वामिनी बेलि, बाहुबलिनी बेलि, भरत बेलि, लघुबाहुबलि बेलि, गुरुबेलि और १७वीं शती के ब्रह्मजयसागर की मल्लिदासिनी बेलि व साह लोहठकी षड्लेश्याबेलि का विशेष उल्लेख किया जा सकता है जिसमें भक्त कवियों ने अपने सरस भावों को गुनगुनाती भाषा में उतारने का सफल प्रयत्न किया है। बारहमासा भी मध्यकाल की एक विधा रही है जिसमें कविअपने श्रद्धास्पद देव या आचार्य के बारहमासों की दिनचर्या का विधिवत् आख्यान करता है। ऐसी रचनाओं में हीरानन्द सूरि का स्थूलिभद्र बारहमासा और नेमिनाथ बारहमासा (१५वीं शती) डूंगर का नेमिनाथ फाग के नाम से बारहमासा (सं १५३५) ब्रह्मबूचराज का नेमीश्वर, बारहमासा (सं १५८१), रत्नकीर्ति का नेमि बारहमासा (सं १६१४), जिनहर्ष का नेमिराजमति बारहमासा (सं १७१३), बल्लभ का नेमिराजुल बारहमासा (सं १७२७), विनोदीलाल अग्रवाल का नेमिराजुल बारहमासा (सं १७४९) सिद्धिविलास का फागुणमास वर्णन (सं १७६३), भवानीदासके अध्यात्म बारहमास (सं १७८१),
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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