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________________ 106 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना अतः हिन्दी के मध्ययुगीन जैन काव्यों का वर्गीकरण कलात्मक न होकर प्रवृत्यात्मक किया जाना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। जैन कवियों और आचार्यों ने मध्यकाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में पैठकर अनेक साहित्यिक विधाओं को प्रस्फुटित किया है। उनकी इस अभिव्यक्ति को हम निम्नांकित काव्य रूपों में वर्गीकृत कर सकते हैं : १. प्रबन्ध काव्य - महाकाव्य, खण्डकाव्य, पुराण, कथा ___ चरित, रासा, संधि आदि। २. रूपक काव्य - होली, विवाहलो, चेतनकर्मचरित आदि। ३. अध्यात्म और भक्तिमूलक काव्य - स्तवन, पूजा, चौपई, जयमाल, चांचर, फागु, चूनड़ी, वेली, संख्यात्मक, बारहमासा आदि। ४. गीतिकाव्य, और ५. प्रकीर्णक काव्य - रीतिकाव्य, कोश, आत्मचरित, गुर्वावली आदि। श्री अगरचन्द नाहटा ने भाषा काव्यों का परिचय प्रस्तुत करने के प्रसंग में उनकी विविध संज्ञाओं की एक सूची प्रस्तुत की है - १. रास, २. संधि, ३. चौपाई, ४. फागु, ५. धमाल, ६. विवाहलो, ७. धवल, ८. मंगल, ९. वेलि, १०. सलोक, ११. संवाद, १२. बाद, १३. झगड़ो, १४. मातृका, १५. वावनी, १६. कक्क, १७. बचरहमासा, १८. चौमासा, १९. पवाड़ा, २०. चर्चरी (चंचरि), २१. जन्माभिषेक, २२. कलश, २३. तीर्थमाला, २४. चैत्यपरिपाटी, २५.
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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