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________________ आदिकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियाँ 87 अभयदेव सूरि, चन्द्रमुनि,कनकामर मुनि, नयनन्दि, जिनदत सूरि, योगचन्द्र, हेमचन्द्र, हरिभद्रसूरि, सोमप्रभ सूरि, मेरुतुंग आदि कवियों की रचनाएं आती है और द्वितीय वर्ग में शालिभद्र सूरि, जिनपद्म सूरि, विनयचन्द्र सूरि, धर्मसूरि, विजयसेन सूरि, अम्बदेव सूरि, राजशेखर सूरि, आदि कवियों की रचनाओं को स्थान दिया गया है। इन कवियों का काल ८ वीं शदी से १४ वीं शदी तक आता है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी 'हिन्दी साहित्य के आदिकाल' में जैन, सिद्ध एवं नाथ साहित्य को स्थान देना उचित नहीं समझा। फिर भी उन्होंने हिन्दी को अपभ्रंश साहित्य से अभिन्न माना है। हिन्दी साहित्य के वैज्ञानिक इतिहास में इस संदर्भ में कुछ प्रयास अवश्य हुआ है पर उसमें भी कुछ उत्तम कोटि की रचनाएं रह गई है। अगर चन्द नाहटाने "प्राचीन काव्यों की रूप परंपरा में आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की परवर्ती रचनाओं को समाहित करने का प्रयत्न किया है। इधर इस काल की विविध विधाओं पर स्वतन्त्र रूप से भी काफी काम हुआ है। गोविन्द, रजनीश, नरेन्द्र भानावत, महेन्द्रसागर प्रचण्डिया, पुरुषोत्तम मेनारिया, शम्भूनाथ पाण्डेय, भोलाशंकर व्यास, वासुदेव सिंह, पुरुषोत्तम प्रसाद आसोया, रामगोपाल शर्मा 'दिनेश' परमानन्द शास्त्री, गणपतिचन्द्र गुप्त, डॉ. हरीश आदि विद्वानों के कार्य इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। गणपति चन्द्र गुप्त ने “आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएं'' पुस्तक में इस काल के हिन्दी जैन साहित्य को अच्छे ढंग से समायोजित किया है। यहां हम इन सभी विद्वानों द्वारा उल्लिखित रचनाओं के आधार पर हिन्दी की आदिकालीन प्रमुख जैन कृतियों पर संक्षिप्त प्रकाश डाल
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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