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________________ ढाल तेरहवीं-नारायणकी देशी जिम मधुकर मन मालती रे-यह देशी नाण पदाराधन करो रे, जेम लहो निर्मल नाण रे ॥ भविकजन ॥ श्रद्धा पण थिर तो रहे रे, जो नवतत्त्व विन्नाण रे ॥ भविक।। नाण-१॥ अज्ञानी करशे किश्यु रे, शुं लहेशे पुण्य पाप रे ।। भविक।। नाणं-२॥ प्रथम ज्ञान पछी दया रे, दशवैकालिक वाण रे ॥ भविक ॥ नाणं-३।। भेद एकावन तेहना रे, समजो चतुर सुजाण रे । भविक ।। नाणं-४।। दोहा बहु कोडयो वरसे खपे, कर्म अज्ञाने जेह । ज्ञानी श्वासोश्वासमां, कर्म खपावे तेह ॥१८॥ ढाल चौदहवीं-होमतवाले साजना-यह देशी नाण नमो पद सातमे, जेहथी जाणे द्रव्यभाव ॥ मेरे लाल ॥ जाणे ज्ञान क्रिया वली, तिम चेतन ने जडभाव मेरे ॥ नाणं-१ नरक सरग जाणे वली, जाणे वली मोक्ष संसार ॥ मेरे हेय ज्ञेय उपादेय लहे, लहे निश्चय ने व्यवहार ॥ मेरे नाणं-२॥ नाम ठवण द्रव्यभाव जे वल सग नय ने सप्तभंग ॥ मेरे जिन सुख पद्म द्रह थकी, लहो ज्ञान प्रवाह सुगंग ॥ मेरे ॥ नाणं-३|| अष्टम श्री चारित्रपद पूजा दोहा चारित्रधर्म नमो हवे, जे करे कर्म निरोध । चारित्रधर्म जस मन वस्यो, सफलो तस अवबोध ॥१६॥ . ढाल पंदखी टुंक अने टोडा वचे रे, मेंदी केरो छोड, मेंदी रंग लाग्यो -यह देशी चारित्र पद नमो आठमे रे, जेहथी भव भय जाय ॥ संयम रंग लाग्यो । सत्तर भेद छे जेहना रे, सित्तेर भेद पण थाय ।। संयम ॥१॥ समिति गुप्ति महाव्रत वली रे दश खंत्यादिक धर्म ॥ संयम् ।। नाण कारय विरतिय छे रे, अनुपम समता शर्म ॥संयम्२॥ बार कषाय क्षय उपशमे रे, सर्व विरति गुणठाण ॥संयम्।। संयम् ठाण असंख्य छे रे, प्रणमो भविक सुजाण ॥ संयम्॥३॥ 510
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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