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________________ दोहा हरिकेशी मुनि राजियो, उपन्यो कुल चंडाल । पण नित्य सुर सेवा करे, चारित्र गुण असराल ॥२०॥ ढाल सोलहवीं साहिब कब मिले ससनेही प्यारा हो सा.यह देशी संयम कब मिले, ससनेही प्यारा हो ॥संयम्।। यह टेक ॥ युं समकित गुणठाणग वारा, आतमसें करत विचारा हो । संयम्१॥ दोष बहेंतालीश शुद्ध आहारा, नवकल्पी उग्र विहारा हो |संयम्-२॥ सहस तेवीश दोष रहित निहारा, आवश्यक दोय वारा हो ॥संयम्-३॥ परिसह सहनादिक परकारा, ए सब है व्यवहारा हो ।। संयम्-४॥ निश्चय निजगुणठरण उदारा, लहत उत्तम भवप्रा हो ।संयम्-५ ।। मोहादिक पर भावसे न्यारा, दुग नय संयुत सारा हो ।संयम्-६॥ पद्म कहे इस सुणी उजमाला, लहे शिववधू वरहारा हो संयम्-७॥ नवम श्री तपपद पूजा दोहा दृढप्रहारी हत्या करी, कीधां कर्म अधोर । तो पण तपना प्रभावथी, काढयां कर्म कठोर ॥२१॥ ढाल सत्रहवीं, पुरुषोत्तम समता छ, ताहरा घटमां यह देशी तप करीए समता राखी घटमां ॥ तप.॥ तप करवाल कराल ले करमां, अडीए कर्म अरिभटमां । तप-१॥ खावत पीवत मोक्ष जे माने, ते सिरदार बह जटमां ॥तपं ॥ एक अचरिज प्रतिश्रोते तरतां, आवे भवसायर तटमां ॥तप-३॥ काल अनादिकी कर्म संगतिर्थे, जीउ पडियो ज्यु खटपटमां ।।तपं.॥ तास वियोग करण ए करणं, जेणे नवि भमिये भवतटमां ॥ तप-४॥ होये पुराण ते कर्म निजरे, ए सम नहिं साधन घटमां तप. -६, ध्यान तपे सवि कर्म जलाई, शिववधू वरिये झटपटमा तप.-७ दोहा विघ्न टले तप गुणथकी, तपथी जाय विकार । प्रशंस्यो तप गुण थकी, वीरे धन्नो अणगार ॥२॥ ढाल अठारहवीं सच्चा साईहो डंका जोर बजाया हो-यह देशी तपस्या करता करता हो डंका जोर बजाया हो ॥ यह टेक ॥ उजमणां तप केरां करतां, शासन सोहा चढाया हो । वीर्य उल्लास वधे तेणे कारण, 511
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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