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________________ ढाल अप्रमत्त जे नित्य रहे, नवि हरखे नवि शोचे रे । साधु सुधा ते आतमा, शुं मुंडे शुं लोचे रे ॥वीरं.१॥ श्री साधुपदकाव्यम् खंते य दंते य सुगुत्तिगुत्ते, मुत्ते य संते गुण जोग-जुत्ते । गयप्पमाए गय-मोहमाए झाएह निच्चं मुणिराय पाए ।१। विमल केवलभासनभास्कर मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरषाय परमेश्वराय जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते साधवे जलादिक यजामहे स्वाहा । षष्ठ श्री सम्यग् दर्शनपद पूजा जिणुत्ततत्ते रुइलक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स । मिच्छत्त नासाई समुग्गमस्स मूलस्स सुधम्म महादुमस्स ॥१॥ . भुजंगप्रयात-वृत्तम् विपर्यास हठ वासनारुपं मिथ्या, टले जे अनादि अच्छे जेम कुपथ्या । जिनोक्ते होये सहजथी श्रद्धधानं, कहिये दर्शन तेह परमं निधानं ॥१॥ विना जेहथी ज्ञान अज्ञान रुप, चरित्रं विचित्रं भवारण्य कूपं. । प्रकृति सातने उपशमे क्षय ते होवे, तिहां आप रुपे सदा आप जोवे ॥२॥ __ ढाल, उलाला की देशी सम्यग्दर्शन गुण नमो, तत्त्व प्रतीत स्वरुपो जी । जसु निरधार स्वभाव छे, चेतन गुण जे अरुपोजी ॥१॥ उलालो जे अनुप श्रद्धा धर्म प्रगटे, सयल पर ईहा टले । निज शुद्ध सत्ता प्रगट अनुभव, करण रुचिता उछले ॥१॥ बहुमान परिणति वस्तु तत्त्वे, अहवा तसु कारणपणे । निज साध्य दृष्टि सर्व करणी, तत्त्वता संपति गणे ॥२॥ पूजा ढाल, श्रीपाल केरास की देशी शुद्ध देव गुरु धर्म परीक्षा, सद्दहणा परिणाम । जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ भविका ! सिद्धचक्र पद वंदो ॥१॥ 498
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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