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साहूणं णमोकारो जइ लब्भइ मरण देस कालम्मि
चिंतामणिं पि लद्धं किं मग्गसि काय मणियाई साहूण णमोकारो कीरंतो अवहरेज जं पावं पावाण कत्थ हियए णिवसइ एसो अउण्णाण
साहूण णमोकारो कीरंतो भावमेत्त संसुद्धो
सयल सुहाणं मूलं मोक्खस्स य कारणं होइ तम्हा करेमि सव्वायरेण साहूण तं णमोकारं तरिऊण भवसमुदं मोक्ख दीवं च पावेमि
धम्म महोवहि सरिसे कम्म महासेल कठिण कुलिसत्थे
खंतिगुण सारगरुए उवसग्गसहे तरु समाणे पंचमहव्वय फलभार रेहिरे गुत्ति कुसुम चेचइए सीलंग पत्त फलिए कप्पतरु रयण सारिच्छे
जीवाजीव विहाणं कज्जाकज फल विरयण सारं
साधूणं समायारं आयारं के वि झायंति ससमय परसमयाणं सूइज्जइ जेण समय सब्भावं सूतयडं सूयगडं अण्णे रिसिणो अणुगुणेति .
अण्णेत्थ सुट्ठिया संजमम्मि णिसुणेति के वि ठाणंगं अण्णे पढंति धण्णा समवायं सव्व विजाणं
॥16॥ संसारभाव मुणिणो मुणिणो अण्णे वियाह पण्णत्ती अमयरस मीसियं पिय वयणे चिय णवर धारेंति
णायाधम्मकहाओ कहेंति अण्णे उवासग दसाओ
अंतगडदसा अवरे अणुत्तर दसा अणुगुणेति जाणय पुच्छं पुच्छइ गणहारी साहए तिलोय गुरु फुड पण्हावागरणं पढंति पण्हाइ वागरणं
॥19॥ वित्थरिय सयल तिहुयण पसत्थ सत्थत्थ अत्थसत्याहं (रं) समयसय दिट्ठिवायं के वि कयत्था अहिजंति
॥20॥ जीवाणं पण्णवणं पण्णवणं पण्णवेंति पण्णवया सूरिय पण्णत्तिं चिय गुणेति तह चंद पण्णत्तिं
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