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Prakrit and Apabhramsa Studies.
मनि आपणइ आलोचीय साच, वेशा ठूठइ लीधी वाच ।
चतुरा राउ ऊठाडयउ तेहि, आणिउ गयगामिणि नई गेहि' ॥४९९॥ कामसेना-आवासे सुदा-गमन]
नाचिणि नर आवंतउ देखि, आपणपू संवरी सुवेखि ।
कणय-कलस भरि निर्मल नीर, दिइ आचमण विच्छेदिई वीर ॥५०॥ सत्कार
आदर-सिउ अवास भझारि, 'आणी आवरजइ वर नारि । भोजन भगति युगति जूजुई, मिलियां राति सुरंगी हुई ॥५०१।" वडइ भलकि जागिउ जूआर, दांतण करिवा काजि कुंवर कामसेनि आयस उहासि, दांतण लेईनइ आवी दासि ।।५०२।। 'दांतण सारिई,' ऊग्यू सूर, आविउ ढूंठ : म करउ असूर ।' बीडू आपी बोलइ बोल, 'राउत ! रखे करउ विगोल' ॥५०३।।
1. ते आवर्जर करइ अपारि आ. 2. 'ममरह' अ. 3. 'अति काल' अ.