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________________ 58] सुदर्शन-चरित। / देखकर उस ग्धालको बड़ी दया आई। उसने अपने मनमें कहा-अहा, ऐसी जोरकी ठंड और ओस गिर रही है और इनके पास कोई वस्त्र नहीं, तब ये सारी रात कैसे बितावेंगे ? मेरे पास ज्यादा वस्त्र नहीं जो उसे ओढ़ाकर इनकी ठंड वगैरहसे रक्षा करदूँ / तब क्या करूँ कुछ सूझ नहीं पड़ता / इसके बाद ही उसे एक उपाय सूझ गया / वह मुनिभक्तिके वश होकर उसी समय अपने घर जाकर लकड़ियोंका एक भारी गटा बाँध लाया और साथमें थोडीसी आग भी लेता आया। मुनिराजके पास उसने आग जलाई, जिससे उन्हें उसकी गरमी पहुँचती रहे। और आप उनके पाँवोंके पास बैठकर थोड़ी थोड़ी लकड़ी उस आगमें जलाता गया। इसी तरह करते उसे सारी रात बीत गई / ग्वालने मुनिराजकी शीत-बाधा अवश्य दूर की, पर इससे वे खुश हुए हों, सो नहीं / कारण चाहे दुःख हो या सुख, बीतरागी मुनियोंको उसमें न द्वेष होता है और न प्रेम होता है-उनके लिए तो दोनों दशा एकसी होती हैं-दोनोंमें उनके समभाव होते हैं और ऐसे ही मुनि कमेंका नाश कर सकते हैं। और जो दुःखोंसे डरकर सुखकी चाह करते हैं वे कभी कर्मोका नाश नहीं कर सकते। ___ सूर्योदय हुआ। योगिराजने उस ग्वालको भव्य समझकर हाथके इशारेसे उठाया और इस प्रकार धर्मोपदेश दिया-"वत्स, मैं तुझे जो कुछ कहूँ, उसे सावधानीसे सुनकर उसपर चलनेका यत्न करना / उससे तुझे बहुत कुछ लाभ होगा। देख, तू जो कुछ काम करे, वह फिर छोटा हो या बड़ा, उसे शुरू करनेके पहले तू
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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