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________________ ४४ ] सुदर्शन-चरित। बड़े आश्चर्यकी बात है। और तुझमें अपार बल है तो उसे बता, केवल गाल फुलानेसे तो कोई अपार बली नहीं हो सकता। नहीं, तो देख, मैं तुझे अपनी भुजाओंका पराक्रम बतलाता हूँ । राजाकी एक देवके सामने इतनी धीरता ! यह देखकर यक्ष भी चकित रह गया। इसके बाद उसने कुछ न कहकर राजाके साथ भयंकर युद्ध छेड़ ही दिया । थोड़ी देरतक युद्ध होता रहा, पर जब उसका कुछ फल न निकला तो राजाने क्रोधमें आकर यक्षके हाथीको बाणोंसे खूब वेध दिया । बाणोंकी मारसे हाथी इतना जर्नरित हो गया कि उससे अपना स्थूल शरीर सम्हाला न जा सका-वह पर्वतकी तरह धड़ामसे पृथ्वीपर गिरकर धराशायी हो गया। राजाके इस बढ़े हुए प्रतापको देखकर यक्षको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह तब दूसरे हाथीपर चढ़कर युद्ध करने लगा। अबकी बार उसने राजाके हाथीकी वैसी ही दशा करडाली जैसी राजाने उसके हाथीकी की थी। तब राजा भी दूसरे हाथीपर चढ़कर युद्ध करने लगा। और उसने यक्षके धुजा-छत्रको फाड़कर हाथीको भी मार डाला। यक्ष तब एक बड़े भारी रथार सवार होकर युद्ध करने -लगा। दोनोंका बड़ा ही घोर युद्ध हुआ। दोनों अपनी अपनी युद्ध-कुशलता और शर-निक्षेपमें बड़ी ही कमाल करते थे। लोगोंको उसे देखकर आश्चर्य होता था। बेचारे डरपोंक-युद्धके नामसे डरनेवाले लोगोंके डरका तो उस समय क्या पूछना ? वे तो मारे डरके मरे जाते थे। दोनोंके इस महा युद्ध में राजाने अपने तीक्ष्ण बाणोंसे यक्षके रथको छिन्न-भिन्न कर डाला । यक्ष तब जमीनपर ही
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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