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________________ २४ ]. सुदर्शन-चरित। चाहता है उसे मोक्ष अर्थात् जिसे जो कुछ इच्छा है-चाह है वह सब उसे एक धर्मके प्रसादसे प्राप्त हो सकती है। इसलिए हे भव्यजनो, मैं बहुत कहकर आडंबर बढ़ाना पसंद नहीं करता । आप एक धर्महीकी सावधानीसे प्रतिदिन आराधना करें । उससे आप सब कुछ मनचाहा सुख लाभ कर सकेंगे। तीसरा परिच्छेद। सुदर्शन संकटमें। महात्मा सुदर्शनने जिस परम-गतिको प्राप्त किया, उसके स्वामी सिद्ध भगवान्को मोक्ष प्राप्तिके लिए मैं नमस्कार करता हूँ। एक दिन कपिलकी स्त्री कपिलाने सुदर्शनको देखा। उसकी अलौकिक सुन्दरताको देखकर वह उसपर जी-जानसे निछावर हो गई । वह मन ही मन कहने लगी-इस खूबसूरत युवाके बिना मेरा जीवन निष्फल है। यह सुन्दरता जबतक मेरा आलिङ्गन न करे तबतक मैं जीती हुई भी मरी हूँ। तब मुझे कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे मैं इस स्वर्गीय-सुधाका पान कर सकूँ। वह अब ऐसे मौकेको ढूँढ़ने लगी। इधर धर्मात्मा सुदर्शनको इस बातका कुछ पता नहीं, जिससे कि वह सावधान हो जाय । एक दिन सुदर्शन अपनी मित्र-मंडलीके साथ कहीं जा रहा था। वह कपिलके घरके नीचे होकर निकला। उसे जाता देखकर कपिलकी
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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