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________________ (५८) तू ने क्या किया, मुझे किस पापी, दुरात्मा के फंदे में डालदिया, हे जननी, तू कहां गई, तूने मुझे जन्म देकर क्यों पाप कूप में डाला । हे पिता, आप कहां अदृश्य हो गए । हे पूज्य पिता नारद जी, क्या आपको भी मुझ अबला पर दया नहीं पाती, महाराज, मौन क्यों धारण कर रक्खा है, मेरी रक्षा क्यों नहीं करते, मैंने क्या अपराध किया है । हे विधाता, ये मेरे किन अशुभ कर्मों का फल है । हे यमदेव, कृपा कर मुझे शीघ्र दर्शन दो, अब मैं इस जीवन से निराश हो गई । तदनंतर हाहाकार करने लगी। .... जब नारद जी ने देखा कि अब यह मरने का निश्चय कर चुकी है, तब बोले बेटी, शोक मत कर, साहस कर, यह वही रुक्मणीनंदन है जो तेरा पति होने वाला था, यह विद्याधरों के देश से तेरे लिए ही आया है। अतएव घबरामत, शोक को त्याग दे। सुंदरी को इस प्रकार आश्वासन देकर प्रद्युम्न से बोले, बेटा सदा क्रीड़ा अच्छी नहीं लगती, हंसी करना भी सदा अच्छा नहीं होता। अब कौतुक और हास्य को छोड़ कर अपने मनोहर रूप को दिखलाओ और इस खेद खिन्न हुई सुंदरी को शांति प्रदान करो। नारद जी के बचन सुन कर कुमार ने सब के मन को हरण करने वाला अपना असली सुंदर, मनोहर रूप धारण
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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