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________________ (५७) पर से जाकर गिर पड़, हम तुझे कदापि कर नहीं देंगे । यदि श्रीकृष्ण जी नाराज़ भी हो जाएँ तो कुछ परवा नहीं । यह कहकर सबके सब राजपुत्र उस भीलको अपने चारों तरफ फैले हुए धनुष से रोकने लगे। तब भील वेषधारी कुमार ने सारी सेनाको शीघ्र ही अपने धनुष से वेष्ठित कर लिया और तुरंत अपनी विद्याओं का स्मरण करके अपने समान भीलों की एक बड़ी भारी सेना तैयार की, जिन्हों ने कौरव योद्धाओं को चारों ओर से घेर लिया। अब तो परस्पर घोर युद्ध होने लगा । भीलों ने पत्थरों और वाणों की वर्षा से राजाओं को इस भांति मारा कि उनके घोड़े सवारों को पटक कर इधर उधर सेना में फिरने लगे और लोगों को कुचलने लगे, हाथी चिंघाड़ मारते हुए भय के मारे रणभूमि से भागने लगे और बड़े २ रथ जर्जर होकर टूटने लगे। भावार्थ भीलों के समूह ने कौरवों की सेना को जीत लिया और शूरवीरों ने रणभूमि छोड़ दी। . अब कुमार उदधिकुमारी को अपनी दोनों भुजाओं से उठाकर आकाश में उड़ गया और उस बेचारी को जो भीलों के भय से थर २ कांप रही थी नारदजी के समीप विमान में बिठाकर आप कौरवों की ओर देखने लगा। उसके विकराल रूप को देख कर कुमारी गला फाड़ २ कर चिल्लाती थी, हे पृथ्वी, तः फट क्यों नहीं जाती कि मैं उस में समा जाऊँ । हे दैव,
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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