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________________ . (४६) तुम्हारा कहना अवश्य मानूंगा । यह सुनते ही काम से आकुल व्याकुल हुई कनकमाला ने बड़ी प्रसन्नता और प्रीति से कुमार को मंत्र दे दिए। मंत्रों को विधिपूर्वक जानकर कुमार ने कनकमाला से कहा, हे पुण्यरूप जिस समय शत्रुने मुझे शिला के नीचे रक्खा था उस समय आप ही मेरे शरण हुएथे दूसरा कोई नहीं । इस लिए आप ही मेरे माता पिता हो सो जो काम पुत्र के करने योग्य हो सो कहो, मैं करने के लिए तैयार हूँ। - इस प्रकार बज्रपात के बचन सुनते ही कनकमाला क्रोध से कुछ कहना चाहती थी कि कुमार नमस्कार करके अपने महल को चला गया । अब तो कनकमाला की बुरी दशा हो गई । वह विचारने लगी, कि हाय, मंत्र भी गए और इच्छा भी पूर्ण न हुई । इस पापी ने मुझे दिन दहाड़े लूट लिया । मेरी आशाओं को नष्ट कर दिया । हाय, हाय ! अब तो जिस तरह बने इस दुष्ट का निग्रह करना चाहिए । बड़ी देर तक विचारती रही । तरह २ के मनसूबे बाँधती रही । अत में किसी ने सच कहा है कि-"त्रिया चरित्र न जाने कोय, खसम मार के सत्ती होय ।" अपनी बुरी दशा करके बाल विखरा कर धूलि में लपेटकर कुचों को नोंचकर, चीर को फाड़ कर, बुरा रूप बनाकर राजा के पास गई और कहने
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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