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________________ (४५) और उसे १६ घडी माता से अलग रक्खा था, उस वियोग जनित श्राप से ही रुक्मणी को यह तेरा १६ वर्ष का वियोग' हुआ है । देख, पाप का फल कैसा मिलता है । जो दूसरों का वियोग करते हैं उनका अवश्य वियोग होता है । अठारहवां परिच्छेद म नि महाराज के बचन सुनकर कुमार आनंद पूर्वक सीधा कनकमाला के महल में आया और बिना नमस्कार किए बैठ गया। यह देखकर कनकमाला ने विचार किया कि अब मेरा मनोरथ अवश्य सफल होगा । इसने अपने मन से माता भाव को निकाल दिया है और मेरे रूप पर मोहित हो गया है । इसी कारण से इसने मुझे नमस्कार नहीं किया है । अब इस समय जो इस से कहूँगी वह अवश्य करेगा । ऐसा चितवन करके कहने लगी कि हे महायोग्य कामदेव, यदि तुम मेरे रमणीय और मनोहर बचनों के अनुसार काम करो तो मैं तुम्हें रोहिणी आदि समस्त मंत्र सिखलादूंगी । यह सुनकर कुमार मुस्करा कर कहने लगा क्या आजतक मैंने तुम्हारा कहना नहीं माना मो. ऐसे शब्द कहती हो । कृपा करके मुझे मंत्र दो, मैं
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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