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________________ (२८) से मनुष्य होकर और मर कर धूमकेतु नाम का असुरों का नायक देव हुआ है । यही दैत्य विमान में बैठकर आकाश मार्ग से कीड़ा करता हुआ जारहा था । देवयोग से उसका विमान रुक्मणी के महलपर जिसमें वह बालक सोरहा था,अटक गया । तब उसे अपने कुअवधिज्ञान से प्रगट हुआ कि पूर्व भव में जिस राजा मधु ने मेरी प्राणवल्लभा को हरा था, वही मेरा वैरी ज्ञान ध्यान के प्रभाव से स्वर्गादिक के अतुल्य सुख भोग कर अब यहां जन्मा है। अतएव वैरभंजाने के विचार से वह दुष्ट दैत्य बेचारे ६ दिन के बालक को हर कर लेगया । इस प्रकार श्रीसीमंधर स्वामी की दिव्यध्वनि से कृष्ण पुत्र का सारा वृत्तांत सुनकर नारद जी अत्यंत हर्षित हुए और तीर्थकर महाराजको साष्टांग प्रणामकरके समवसरण से बाहर निकल आए । श्री कृष्ण के प्रेम वंधन की प्रेरणा से और उन के पुत्र को देखने की अभिलाषा से वे मेघकूट नगर में राजा कालसंवर के यहां आए और कृष्ण पुत्र को जी भर देख कर तथा उसे आशीर्वाद देकर द्वारका नगरी की ओर रवाना होगए । द्वारका में पहुँचते ही नारद जी पहिले तो मधुसूदन श्रीकृष्णचन्द्र से मिले, पीछे रुक्मणी से मिले और रुक्मणी को प्रधम्न विषयक सम्पूर्ण वृत्तांत जो सीमंधर स्वामी ने दिव्यध्वनि में वर्णन किया था, कह सुनाया । यह वृत्तांत सुनकर
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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