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भुवन भास्कर दिन मणि सूर्य प्राणि मात्र को अपनी प्रखर किरणों से संतप्त कर रहा था । आकाश से आग बरस रही थी। गरम हवा के झोंके शरीर पर जलते अंगारों के सामान लगते थे । सभी पेड पौधे झुलस गये थे । गर्मी के मारे पृथ्वी तवे के समान तप रही थी । ऐसे समय में श्रीचन्द्र कुमार अपने मित्र के साथ सुवेग रथ में बैठ नदी नालों वनों उपवनों को पार करता हुआ एक गहन जंगल में जा पहुँचा था।
गर्मी की अधिकता ने कुमार को भी आधेरा था। उस का मुख मुरझा गया था, और प्यास के मारे उसका