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कण्ठ सूखने लगा था। पानी का कहीं पता नहीं लगता था। मित्र बहुत दुःखी थे। वे आपस में कहने लगे, न मालूम आगे क्या होने वाला है ?" कुमार सूखे पत्ते की तरह कुम्हला गया है। केवल एक यही उपाय शेष रह गया है कि इस ऊंचे पेड पर चढ कर जल की तलास की जाय।
. सारथी झपट कर पेड पर चढ गया । उस ने इधर उधर चारों ओर नजर दौडानी शरु की । थोड़ी ही देर में दक्षिण की ओर उसे एक सरोवर दिखाई पडा । वह बडी प्रसन्नता से नीचे उतरा और गुणचन्द्र से बोला " मित्र यहां से दक्षिण की ओर बगुले और चकवे उडते नजर आते हैं। अतः अवश्य ही उधर कोई तालाव है। सारथि स्थ पर बेठ गया और बात की बात में वे तीनों वहां पहुच गये । सरोवर के किनारे पर आमों का एक सुन्दर वन था। वहीं पर एक सघन आम के पेड़ के नीचे रथ ठहराया गया। दोनों मित्र दौड़कर स्वादिष्ट और शीतल जल ले आये । कुमार ने खूब धाप कर पानी पिया । कुछ स्वस्थ होने पर सरोवर की पाल पर आया, और वहां बैठ कर वलाव की शोभा निहारने लगा । कला पूर्ण पत्थरों की सुन्दर बांधनी को देख कर वह अचरज में डूब गया।