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( १२३. ) फती हुई मुझे दर्शन रूप जल से जीवन प्रदान करने की, कृपा करिये।
- इस प्रकार पत्थरों को भी पिघला देने वाले क्लिाम करती हुई राजकन्या को उसके पिता और जयकुमार आदि लोगों ने समझा बुझा कर शान्त किया। . . जयकुमार ने सबके सामने कहना शुरु किया ओह !. वह तो · हमारे नगर का रहने वाला, सेठ लक्ष्मीदत्त का. कुमार, हमारे पिता का स्नेहपात्र, कणकोट्टपुर का जागीरदार है। उसके लिये अधिक दुःखी मत होओ । यदि राजकुमारी मेरे साथ चले तो हमारे नगर में वह अष्टिकुमार आसानी से मिल सकता है। मैं भी राजकुमारी को बडी प्रसन्नता से ले जा सकता है। इसमें अफसोस करने जैसी कोई बात नहीं है आप सब लोग शान्ति रखें। जयकुमार की इस प्रकार आश्वासन मरी बातों से रोमा और राजकन्या बड़े ही सन्तुष्ट हुए मानो प्यासे को शीतल जल मिल गया हो। - स्वयंवर में आये हुए राजाओं को राजकुमारों को हाथी घोड़े और वस्त्राभूषणों से उचित सत्कार करके उनकों अपने २ नगरों की तरफ विदा किये । तिलकमंजरी भी बड़ी सजधज के साथ तैयार हुई. । ,त्यों हो मंत्री ने राजा