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________________ ... .. . . (१२४) से प्रार्थना की कि राजन् ! जयकुमार के डेरे से गुप्तचरों द्वारा जो समाचार जानने को मिले हैं मालूम होता है दाल में कुछ काला है। विना सोचे समझे जय के साथ राजकुमारी को भेजेंना, खतरे से खाली नहीं। .. मंत्री के इस प्रकार चेतावनी भरे वचन सुनकर राजा तिलकसेन ने राजकुमारी तिलकमंजरी को भेजने का विचार स्थगित कर दिया और अपने धीर नाम के मंत्री को श्रीचन्द्रकुमार को लाने के लिये भेज दिया। ... इधर श्रीचन्द्रकुमार मित्र के साथ जल्दी से अपने नगर में पहुँच गया। सेठ लक्ष्मीदत्त उसकी राह में अपनी आंखे विछाये बैठा था । दज के चन्द्रमा के जैसे कुमार को घर पर आया देख सेठ ने उसे बड़े प्रेम से स्नेहालिंगन किया। पिता के देरी से आने का कारण पूछने पर इधर 'उधर के कोई खेल का बहाना बताकर उत्तर को टाल दिया। - कुछ दिनों बाद जयकुमार आदि स्वयंवर से लौट माये । राधावेधे श्रादि की साधना का सारा वृत्तान्त अपने महाराजा को विस्तार पूर्वक कह सुनाया । सुनकर महाराजा ने प्रसन्नता के साथ कहा कि आज मुझे श्रीचंद्रके सफल होने पर उतनी हो खुशी हुई है जितनी की
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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