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विजयप्रशस्तिसार |
इस नारद पुरी के पास एक पर्वत के शिखर पर भी प्रद्युम्न कुमार ने श्री नेमीनाथ भगवान् का एक चैत्य (मन्दिर) बनवाया । और उन्हों ने इस मन्दिर में बहुत ही मनोहर और नेत्रों को आनन्द देनेवाली श्री नेमीनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित की । प्रद्युम्नकुमार इस भगवान् के ध्यान को अपने अन्तःकरण से दूर नहीं करते थे और अहर्निश धर्म भावना में समय का सदुपयोग करते थे ।
इस नारद पुरी में एक कमा' नाम के शेठ रहते थे । उनकी 'कोडीमदेवी' नामकी एक धर्मपत्नी थी। इन दोनों की देव में देवबुद्धि, गुरु गुरुबुद्धि और धर्म पर भी पूर्ण श्रद्धाथी । अर्थात् यह दोनों सम्यक्त युक्त थे | क्योंकि श्री हेमचन्द्राचार्य प्रभु कहते हैं कि:
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या देवे देवता बुद्धि गुरौ च गुरुतामतिः । धर्मे च धर्मधिः शुद्धा सम्यक्त्वमिदमुच्यते ॥ १ ॥
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इन दोनों की श्रीजिनेश्वर में परम भक्ति और साधुजनों में परम प्रीति थी । मन, वचन, कायासे यह दोनों धर्म प्रचार के वीर रूपही होरहे थे । औदार्य, शौर्य गांभिर्यादि उत्तमोत्तम गुण तो मानो इनके दास होकर रहते थे । इस दम्पती के पुत्र सुखका सौभाग्य नहीं प्राप्त और इस कारण यह बड़े दुःखी रहते थे । किन्तु दोनों मोक्ष के अभिलाषी होने से अपने द्रव्य को*सात क्षेत्रों में खर्चेते थे और क्लिष्ट कर्मों को क्षय करने वाले तपमें लवलीन रहते थे । और यह दोनों सबंदा बड़ी श्रद्धा पूर्वक पञ्चपरमेष्ठी मंत्र का ध्यान करते थे ।
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एक समय की बात है कि कोडीम देवी नित्य नियमानुसार एक रोज पञ्चपरमेष्ठी का ध्यान करती हुई निद्रा के अधीन हो गई ! इस देवी ने रात्रि में एक स्वप्न देखा । क्या देखती है कि * साधु, साध्वी, भावक, श्राविका, जिनभवन, बिम्ब और ज्ञान