________________
पहला प्रकरण। एक बड़ा भारी सिंह, सामने खड़ा है जो कि हस्तियों के त्रास का निदान भूत गर्जना को करता है, जिसका रंग सर्वदा सफेद है। जिसने अपना मुँह निकासा है । जिसका बड़ा भारी पूंछ नोलाकार हुआ है । इस प्रकार के स्वप्न को सम्यक्प्रकार से देखती हुई
आनंद से भरी हुई कोडीम देवीने निद्रा को त्यागा। प्रातःकाल उठ कर उसने अपने पति को नमस्कार करके रात्रि में देखा हुआ स्वप्न निवेदन किया । क्योंकि पतिव्रता-सती स्त्री के लिये तो स्वप्न अपने पति को ही कहने योग्य हैं।
'कमा शेठ ने इस उत्सम स्वप्न का फल बड़े बिचार पूर्वक कहा कि-" हे प्रिये ! इस उत्तम स्वप्न के फल में तुझे पुत्रोत्पत्ति हो. गी।” बस ! इस कथन को सुनती हुई कोडीम देवी अतीव प्रानंद में निमग्न होगई । बस उसी रोज से देवीने गर्भको धारण किया। जब उत्तम जीवका जन्म होने वाला होता है तब माता को उसमो. तम दोहद (गर्भ लक्षण ) उत्पन्न होते हैं । इस गर्भ को धारण करने के बाद कोडीम'देवी को भी उत्तमोत्तम दोहद उत्पन्न होने लगे। जैसा कि उसके चित्त में इस बातकी बलवती इच्छा हुई कि मै गरीब लोगों को दान हूँ । जिनेश्वर भगवान्की पूजा करूं। मुनिराज के द्वारा भगवानकी वाणी का पान करूं । पवित्र मुनिराजों को दान दूं। श्रीसंघमें स्वामी वात्सल्य करूं। तीर्थ यात्रा करूं , इत्यादि । कमा शेठ ने विपुल द्रव्य से अपनी शक्त्यनुसार इन इच्छाओं को पूर्ण किया। देवी भी गर्भवती स्त्री के योग्य कार्यों को करती हुई जिसमें किसी प्रकार से भी गर्भ को तकलीफ न हो उसी प्रकार यत्न पूर्वक रहने लगी।
दिन-प्रतिदिन गर्भ बढ़ने लगा। अनुक्रमे कोडीम देवी ने वि. विक्रम संवत् १६०४ मिती फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन उत्तमः