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राजा ने उससे कहा - दत्त! तुम लंबे समय के बाद दिखायी दे रहे हो? तब दत्त ने कहा - प्रभु! आप इसका कारण सुनें!
___ व्यापारियों को देशयात्रा आदि से धन कमाना योग्य है। इस कारण से मैं धनार्जन के लोभ से बहुत सारे नगरों में फिरा। कहा गया है कि - जो अपने घर आदि के मोह से, विविध नगरों का अवलोकन नहीं करता है, वह कूपमंडूक के समान जरा भी सार-असार के बारे में नहीं जान सकता है। देश विदेश में घूमने से विविध आश्चर्य देखे जाते हैं, खुद का भाग्य जाना/पहचाना जाता है, अच्छेबुरे का भेद जाना जाता है, इस कारण से पृथ्वी पर विचरण करना चाहिए।
राजन! मैं व्यापार करने के लिए देवशाल नामक नगर गया था। राजा ने कहा-वहाँ तुमने कौन-सा आश्चर्य देखा अथवा सुना? वह कहो। तब दत्त ने कहा-देवशालनगर विविध आश्चर्य से युक्त है। वहाँ के घर देव-विमान के समान
और नगर के लोग कामदेव के सदृश दिखायी पड़ते हैं। और जो मैंने श्रेष्ठ चित्र देखा है, उसके बारे में कहने में असमर्थ हूँ। उससे राजन्! आप स्वयं ही चित्र को देखें। इस प्रकार कहते हुए दत्त ने चित्रपट को आगे किया। शंख राजा भी उस चित्र को देखकर विस्मित हुआ और पूछने लगा-चित्र में रही यह देवी कौन है?
जो मेरे मन का हरण कर रही है? अथवा ऐसे रूप की संभावना नहीं है, किन्तु यह किसी शिल्पी के ही ज्ञान की कुशलता है।
दत्त ने कहा-राजन्! ध्यान से सुनें। आपने अधूरा ही देखा है। क्या वास्तविक रूप को चित्रित करने में कुशलता हो सकती है? अद्वितीय सुंदरता के निर्माण में विधाता की ही प्रवीणता है। राजा ने पूछा - क्या कमी है? जो चित्रपट लिखित होने पर भी कोई सर्वांग सुंदर देवी, मेरे मन को अत्यन्त आकर्षित कर रही है। हँसकर दत्त भी कहने लगा - आप मनुष्यस्त्री को देवीत्व की उपमा दे रहे हैं। दूसरी बात यह है कि देव की देवियाँ भी मानुष्य स्त्री हो सकती है, इसमें संशय की बात नहीं है। शंख राजा - अहो! क्या मानुष्य स्त्रियाँ ऐसी रूपवाली हो सकती हैं? दत्त ने कहा - क्या इसके हाव-भाव आदि लिखे जा सकते हैं? शिल्पी ने केवल आँखों के आनंद के लिए रूप चित्रित किया है। उसको प्रत्यक्ष देखकर, चित्र में देखी हुई स्त्री को आप कूटलेख के समान मानेंगे! शंख राजा ने पूछा - भद्र! यह किसकी पुत्री है? दत्त ने कहा - प्रभु! यह मेरी बहन है। शंख राजा - तो क्या तूने इसे देवशाल नगर में देखा था?
__दत्त कहने लगा - मैं आपको सत्य हकीकत कहता हूँ। एक दिन मैं पिता की आज्ञा लेकर देश देखने की इच्छा से, सार्थ और बहुत सैनिकों से युक्त, देवशालदेश की सीमा पर पहुँचा। शीघ्रगामी घोड़े पर चढ़कर, नगरवासी सार्थ लोगों को मार्ग दिखाते हुए आगे जा रहा था। जब बड़ी अटवी में पहुँचा, तब