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श्री शत्रुजय तीर्थाधिपति आदिनाथाय नमो नमः
महाविदेह विहरमान श्री सीमंधरस्वामीने नमो नमः प्रातः स्मरणीय पूज्य भट्टारक १००८ प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वराय नमोनमः
पंडित श्री सत्यराजगणि द्वारा विरचित श्री पृथ्वीचंद्रगुणसागर चरित्र
: मंगलाचरण : जिनके चरणकमल में, विश्व की यह लक्ष्मी भी संगति करती है. ऐसे श्री ऋषभदेव तुम्हारे अद्वितीय कल्याण की आधिक्यता को विस्तारें! जिनका समस्त अज्ञान रूपी अंधकार का समूह नष्ट हो गया है और जिनके यश की स्पर्धा करते हुए मानो चंद्र कलंक रूपी कीचड़ को धारण करनेवाला हुआ, वे श्री शांतिनाथ तुम्हें शांतिकारक हो। अपने बाहु रूपी झूले से जिसने कृष्ण को झूलाया और विश्व को आश्चर्य करनेवाली स्फूर्ति से युक्त श्री नेमिनाथ तुम्हारे कल्याणकर्ता
हो!
मानो हृदय के अंधकार को नष्ट करने के लिए, जिनके मस्तक पर निरंतर कांति से देदीप्यमान, सर्प की फणा में रहे मणियों का समूह शोभा दे रहा था, ऐसे वे श्री पार्श्वनाथ तुम्हारें आनंद के लिए हो!
मानो भव्य प्राणियों के कर्मरूपी हाथी का भेदन करने में, प्रमाद रहित और अत्यन्त पराक्रमी सिंह, जिनके चिह्न के रूप में शोभा दे रहा है, वे श्री वीर प्रभु तुम्हें कल्याणकारी हो!
जिनको सौभाग्य से लब्धि रूपी स्त्रियों ने एक साथ ही आलिंगन किया है, वे श्री गौतम स्वामी तुम्हारे हृदयस्थान में उत्पन्न अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करें!
क्षण मात्र में ही जिनके वाणी रूपी दीपक से, प्राणियों की जड़ता रूपी अंधकार नष्ट हो गया है, ऐसे सद्गुण रूपी समुद्र उन पूज्य गुरु भगवंतों को वारंवार नमस्कार हो!
सदभाव से अरिहंतों को नमस्कारकर और हृदय में वाग्देवता का स्मरणकर, मैं (सत्यराजगणि) पृथ्वीचंद्र राजा के चरित्र का वर्णन करता हूँ!
प्रथम भव जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुमंगला नामक देश है। उस देश में शंखपुर नामक नगर और वहाँ शंख राजा राज्य करता था। वह पिता के समान प्रजा का पालन करता था! अन्यदिन शंख राजा राजसभा में बिराजमान था! तब गज श्रेष्ठी के पुत्र दत्त ने राजा के आगे भेंट रखकर नमस्कार किया। स्वागत आदि प्रश्नपूर्वक